लेखक दिनेश शर्मा / जनवाणी न्यूज़ श्रावण मास का महत्व
- प्रबुद्ध पाठकों जैसा कि सर्वविदित है कि देवासुर संग्राम के वक्त समुद्र मंथन के समय विभिन्न प्रकार के रत्नों की प्राप्ति हुई उन्ही मे से एक रत्न,हलाहल यानी जहर भी प्राप्त हुआ । देवताओं पर संकट जानकर भगवान शिव ने उस हलाहल को पी लिया , और अपने गले में उसको रोक लिया । इसी कारण शिवजी का गला नीला दिखाई देता है । इसी कारण शिवजी का नाम नीलकंठ पड़ा,हलाहल के तीव्र ताप के कारण शिवजी का शरीर बेचैन होने लगा, महादेव की परेशानी देख कर सभी देवताओं ने महादेव का जलाभिषेक किया , और तभी से श्रावण मास में महादेव का जलाभिषेक करने की परंपरा की शुरुआत हुई। पूरा श्रावण मास ही भगवान शिव को समर्पित है और भगवान शिव का आशीर्वाद पाने के लिए इस शुभ माना जाता है। इस पूरे मास में ही पूजा अनुष्ठान और समारोह होते हैं, इस दौरान मनाए जाने वाले उल्लेखनीय त्योहारों में श्रावण सोमवार व्रत ,हरियाली तीज ,नाग पंचमी और रक्षाबंधन शामिल है । श्रावण मास में ही सती ने कठोर तप करके शिवजी की प्राप्ति की थी , इसीलिए शिवजी को यह मास बहुत अधिक प्रिय है। ऐसी मान्यता है कि सावन में ही भगवान शिव धरती पर आए थे और अपनी ससुराल भी गए थे।
- श्रावण मास में बड़ी संख्या में जातक सोमवार को व्रत रखते हैं, इस दिन प्रात काल में नहा धोकर मंदिर जाते हैं और शिवजी पर भांग ,धतूरा, बेलपत्र चढ़ाने के बाद जलाअभिषेक करते हैं । पूरे दिन उपवास रखने के बाद शाम को मीठे से यह व्रत खोला जाता है । इस व्रत को रखने से सुख ,समृद्धि तो मिलती ही है, साथ ही, इससे शारीरिक और मानसिक पापों का नाश भी हो जाता है।
- बड़ी संख्या में शिव भक्त अपने आराध्य देव को प्रसन्न करने के लिए कावड़ यात्रा करते हैं ,यह एक पवित्र तीर्थ यात्रा है ,इस यात्रा में श्रद्धालु बांस से बनी कावड़ में गंगाजल भरकर ,उसे अपने कंधों पर लेकर सैकड़ो मील पैदल चलते हैं और अपने इलाके के शिवालय में जाकर जलाभिषेक करते हैं । गंगाजल , गंगा जी के विभिन्न तटों से भरने की परंपरा है लेकिन शिवभक्त सबसे ज्यादा हरिद्वार से कावड़ उठाते हैं । कुछ शिव भक्त गंगोत्री , जहां गंगा जी का उद्गम स्थल है ,से भी गंगाजल कावड़ में भरते हैं । आज के समय में कावड़ यात्रियों की संख्या करोड़ों में है । सैकड़ो मील के इस रास्ते पर श्रद्धालु विभिन्न भंडारों का आयोजन करते हैं और तमाम स्वास्थ्य शिविर लगाए जाते हैं , जिससे कि कांवड़ियों को किसी भी प्रकार का कष्ट न होने पाए,सबसे ज्यादा कांवड़, विभिन्न ज्योतिर्लिंगो और स्थानीय शिवालयों , जैसे पुरा महादेव और अहार महादेव में चढाई जाती है।
- अंत में भगवान शिव से प्रार्थना है कि जनवाणी के सभी प्रबुद्ध पाठकों का कल्याण हो और सभी तरह के सुख और समृद्धि इन्हें प्राप्त हो । ओम् नमः शिवाय