ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण में किसानों को अर्जित भूमि की एवज में भूखंड आवंटन की पात्रता पॉलिसी बनाई जाए पारदर्शी

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    रविंद्र बंसल वरिष्ठ संवाददाता  / जन वाणी न्यूज़                                        ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण में किसानों को अर्जित भूमि की एवज में भूखंड आवंटन की पात्रता पॉलिसी बनाई जाए पारदर्शी
    पात्रता निर्धारण में भ्रष्टाचार की मिल रही है खबरें
    भ्रष्टाचार के जरिए पहले भी अपात्र लोगों को आबंटित किए जा चुके हैं आबादी भूखंड।
    भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने के लिए पॉलिसीज का अखबारों में प्रकाशित करायें इश्तहार
    -कर्मवीर नागर प्रमुख
    ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण द्वारा अर्जित भूमि के सापेक्ष किसानों को आबंटित होने वाले आबादी भूखंडों की पात्रता की परिभाषा समय-समय पर प्राधिकरण द्वारा बदली जाती रही है। इसीलिए 6% और 8% के भूखंड आबंटन में भ्रष्टाचारी धांधली होती रही हैं। ग्रेटर नोएडा की स्थापना के वक्त सभी किसानों को अर्जित भूमि की एवज में 10% भूखंड आवंटित किया जाना सुनिश्चित किया गया था। लेकिन बाद में पात्रता निर्धारण हेतु किसानों को पुश्तैनी और गैर पुश्तैनी काश्तकार की श्रेणियां में बांट दिया गया। जिसमें ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण के स्थापना दिवस 28 जनवरी 1991 से पहले के काश्तकारों को ही पुश्तैनी काश्तकार की श्रेणी में रखते हुए 6% और 8% आबादी भूखन्ड के लिए पात्र माना गया। लेकिन अब खबरें मिल रही है कि पात्रता के दायरे को और संकुचित करते हुए केवल ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण के अधिसूचित क्षेत्र के गांवो के किसानों को ही 6% और 8% भूखंड आवंटन हेतु पात्र माना जा रहा है। जबकि पिछले दिनों रमेश चंद शर्मा नामक किसान के मामले में माननीय उच्चतम न्यायालय द्वारा दिए गए निर्णय के अनुसार ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण द्वारा किसानों को पुश्तैनी और गैर पुस्तैनी काश्तकार की गढी गई परिभाषा को आर्टिफिशियल करार दिया गया है। ऐसे में सवाल उठता है कि कुछ किसानों को अपात्र बताकर भूखंड आवंटन के हक से क्यों वंचित किया गया ? अगर वंचित किया गया तो प्राधिकरण के अधिकारियों ने पात्रता के नियमों पर अक्षरशः पालन क्यों नहीं किया ? और जब अधिकारियों द्वारा अपात्र लोगों को भी भूखंड आवंटित कर दिए गए तो पिछले समय में भ्रष्टाचारी तरीके से अपात्र लोगों को 6% और 8% के भूखंड आवंटन करने वाले अधिकारियों के विरुद्ध कार्रवाई क्यों नहीं की गई ? जबकि इस मामले पर पिछले दिनों जांच भी प्रारंभ कराई गई थी।
    लोगों का मानना है कि हमाम में सब नंगे हैं इसीलिए अधिकारियों की गर्दन फंसते देख प्राधिकरण ने बदनामी के दर से जांच को लीपापोती करके बंद कर दिया है। क्योंकि ऐसे कई मामलों में बड़े अधिकारियों की संलिप्तता की वजह से भ्रष्टाचारियों पर कोई शिकंजा नहीं कसा गया इसीलिए ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण में बैठे भ्रष्टाचारी मठाधीशों के हौसले अभी भी बुलंद हैं। इसीलिए अर्जित भूमि की एवज में 6% और 8% की भूखंड आवंटन की पात्रता निर्धारण में भ्रष्टाचार का पहले भी बहुत बड़ा खेल होता रहा है जिसकी संभावना से अब भी इनकार नहीं किया जा सकता। शायद इसीलिए अर्जित भूमि की एवज में ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण द्वारा पात्रता निर्धारण की नीति को पारदर्शी तरीके से अखबारों में खुलासा नहीं किया जा रहा है क्योंकि ऐसा करने से प्राधिकरण के कुछ भ्रष्टाचारी अधिकारियों की दुकानदारी बंद हो जाएगी।
    अर्जित भूमि की एवज में किसानों को आवंटित होने वाले 6% और 8% के आबादी भूखंडों की पात्रता निर्धारण की शर्तें बार-बार बदलना ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण की तानाशाही और मनमानी के सिवाय कुछ नहीं। क्योंकि प्राधिकरण के अधिकारी शर्तों और नियमों में बदलाव का प्रस्ताव पास कब कर लेते हैं किसी को भनक तक नहीं लगती। इसलिए प्राधिकरण की बोर्ड बैठक में किसानों के मुद्दे उठाने वाले किसान लोग और स्थानीय जनप्रतिनिधि भी शामिल किए जाने चाहिए।
    *समूचे देश में किसानों को श्रेणियां में बांट कर लाभ से वंचित करने का कारनामा केवल नोएडा और ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण का ही रहा है। इसलिए नया ग्रेटर नोएडा घोषित क्षेत्र के किसानों को मुआवजा वितरण, आबादी भूखंड आवंटन और गांवों के विकास से संबंधित अहम मुद्दों पर पहले से ही सचेत रहना होगा।* क्योंकि पिछले दो दशकों में इन मुद्दों से जुड़े मामलों पर नोएडा और ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण की विश्वसनीयता पर प्रसन्न चिन्ह लगा है। क्योंकि आए दिन नोएडा और ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण किसानों के अहित में अपने नए नियम और शर्तें लागू करने का काम करते रहे हैं दूसरी तरफ बनाए गए नियम शर्तों और पॉलिसीज में सुराख करके भ्रष्टाचारी करनामें भी करते रहे हैं। अभी भी ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण द्वारा भले ही अर्जित भूमि की एवज में किसानों को आबंटित होने वाले 6% और 8% भूखंड की पात्रता के दायरे को भले ही नोटिफाईड गांवों तक सीमित कर दिया गया है लेकिन कुछ अधिकारी अभी भी पात्रता निर्धारण में सेटिंग गेटिंग का खेल खेल रहे हैं।
    जहां एक तरफ प्रदेश के माननीय मुख्यमंत्री भ्रष्टाचार के विरूद्ध जीरो टॉलरेंस नीति पर काम कर रहे हैं वहीं दूसरी तरफ ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण के अधिकारी भ्रष्टाचारी कारनामों से बाज आते नजर नहीं आ रहे हैं। ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण के लैंड विभाग में तैनात एक अधिकारी के विषय में तो यहां तक भी चर्चाएं हैं कि वह बिना रिश्वत लिए कोई काम ही नहीं करता है। *नोएडा और ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण में तो ऐसा लगता है कि जैसे भ्रष्टाचार एक अधिकृत अधिनियम बन गया हो। जनपद गौतम बुद्ध नगर में भ्रष्टाचार के विरुद्ध आवाज उठाने वाली राजनीतिक ताकतों का कुछ ऐसा हाल हो गया है जैसे “रोम जल रहा था और नीरो बांसुरी बजा रहा था।”*
    यही कारण रहे हैं कि पिछले कुछ वर्षों में नोएडा और ग्रेटर नोएडा के घोटाले बाज अधिकारियों की वजह से देश और दुनिया में इन दोनों प्राधिकरणों की साख को बट्टा लगा है और शायद इसी वजह से माननीय उच्चतम न्यायालय द्वारा भी इन दोनों प्राधिकरणों में हो रहे घोटालों पर कई बार तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की जा चुकी है। लेकिन लगता है कि इसके बावजूद भी अधिकारी सुधरने को तैयार नहीं।
    प्राधिकरण और सरकार में बैठे उच्च अधिकारियों को ग्रेटर नोएडा और नोएडा की साख सुधारने के लिए किसानों और आम जनता से संबंधित नीतियों को पारदर्शी बनाने हेतु सख्त कदम उठाने होंगे। नए ग्रेटर नोएडा घोषित क्षेत्र के किसानों में विश्वास पैदा करने के लिए ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण को किसानों के लंबित मुद्दे प्राथमिकता पर निपटाने चाहिए। गांवों में कैंप लगाकर किसानों की समस्या निस्तारण किया जाना चाहिए ताकि प्राधिकरण में बैठकर किसानों का आर्थिक और मानसिक उत्पीड़न करने वाले भ्रष्टाचारियों पर अंकुश लग सके। किसानों और आमजन से जुड़ी सभी पॉलिसीज को पारदर्शी बनाने के लिए अखबारों में विज्ञापन के जरिए प्रचार प्रसार किया जाना चाहिए ताकि कोई किसी के भ्रम जाल में ना फंस सके। अर्जित भूमि की एवज में पात्रता नियम और शर्तों में बार-बार किये जा रहे बदलाव पर भी पुनर्विचार करना चाहिए। क्योंकि किसान भले ही कहीं का निवासी हो लेकिन प्राधिकरण द्वारा अर्जित भूमि पर प्रस्तावित योजनाओं में और दरों में पुश्तैनी और गैर पुश्तैनी का कोई अन्तर नहीं है। ऐसी स्थिति में किसानों को आर्टिफिशियल परिभाषाओं और श्रेणियां में बांट कर आबादी भूखंड आवंटन से वंचित करना तर्कसंगत और न्यायोचित प्रतीत नजर नहीं आता। ऐसे किसानों को आबादी भूखंड आवंटन से वंचित किया जाना भी उचित प्रतीत नहीं होता जो जनपद गौतम बुद्ध नगर बनने से पूर्व के जनपद गाजियाबाद के निवासी रहे हों। इसके अतिरिक्त अब भूखंड पात्रता की नई शर्तों के अनुसार ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण के नोटिफाईड गांवों के अलावा गौतम बुद्ध नगर के ही निवासी अन्य किसानों को पात्रता के दायरे से वंचित किया जाना भी कतई तर्कसंगत और न्यायोचित नहीं है। इसे तो केवल किसानों के प्रति जुल्म और अन्याय और प्राधिकरण की तानाशाही ही कहा जा सकता है इसलिए प्राधिकरण को ऐसे मुद्दे पर पुनर्विचार करना चाहिए अन्यथा यह मामला विधानसभा के आगामी सत्र में प्रमुखता से उठवाया जाएगा।

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