लोनी के निठौरा गांव का मामला 18 साल बाद आया हत्या के मामले में फैसला, चार आरोपियों को आजीवन कारावास एवं 20-20 हजार रुपए का अर्थ दंड

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                            मृतक मनोज का फाइल फोटो                                                   रविन्द्र बंसल प्रधान संपादक  / जन वाणी न्यूज़                                  गाजियाबाद। 18 वर्ष बाद आया हत्या के मुकदमे का फैसला। चार लोगों को आजीवन कारावास की सजा के साथ 20-20 हजार रुपए का अर्थदंड भी लगाया गया है। जबकि अदालत द्वारा मृतक मनोज के विरुद्ध लगाए गए 307 के मुकदमे में सह अभियुक्त दो लोगों को साक्ष्यों के अभाव में बरी कर दिया गया है । बता दे की 17 अक्टूबर 2006 की शाम को करीब पांच – छः बजे के बीच निठौरा गांव निवासी मृतक मनोज पुत्र महिपाल अपने भाई ओमप्रकाश व पिता के साथ बैठकर घर पर बात कर रहे थे। इसी दौरान रघुराज पुत्र श्यामलाल वह उसका एक अन्य साथी मारुति कार लेकर आए और मनोज से कहा कि राजेंद्र प्रमुख के पास चलो तुम्हारा समझौता करा देते हैं। यह कहकर दोनों मनोज को अपनी कार में बैठ कर ले गए। मृतक के परिजनों के मुताबिक गांव के बाहर गोयल की जमीन पर ले जाकर राजेंद्र व रघुराज पुत्रगण श्यामलाल, चाहत राम पुत्र रतिया व बिजेंदर पुत्र ननवा सभी निवासीगण निठौरा ने मिलकर गोली मारकर मनोज (26) की हत्या कर दी थी। तथा शव को कार में रखकर महमूदपुर गांव के पास नाले पर छोड़ आए थे। इतना ही नहीं आरोपियों ने मनोज की हत्या करने के बाद मृतक मनोज व उसके दो साथियों के विरुद्ध हत्या के प्रयास का मुकदमा लोनी थाने में दर्ज करा दिया। परिजनों के मुताबिक जिस समय मनोज के विरुद्ध हत्या के प्रयास का मुकदमा लिखा जा रहा था उसी समय उसकी लाश कार में रखी हुई महमूदपुर गांव के पास नाले पर मिली। इसकी सूचना पुलिस को मिल गई। पुलिस ने शव को कब्जे में लेकर पंचनामा भर पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया। मृतक मनोज के भाई ओमप्रकाश द्वारा इस संबंध में राजेंद्र व रघुराज पुत्रगण श्यामलाल, चाहत राम पुत्र रतिया, बिजेंद्र पुत्र ननवा निवासी गांव निठौरा के विरुद्ध लोनी थाने में मनोज की हत्या का नामजद मुकदमा दर्ज कराया था। लेकिन लोनी पुलिस द्वारा 20 दिन बाद ही हत्या के इस मुकदमे में एफ आर लगाकर आरोपियों को क्लीन चिट दे दी गई। इसके बाद ओमप्रकाश द्वारा उच्च अधिकारियों से न्याय की गुहार लगाई गई इसके पश्चात उक्त मुकदमे की जांच थाना लिंक रोड को दी गई, लेकिन लिंक रोड पुलिस द्वारा भी इस मुकदमे में एफ आर लगा दी गई। जिस पर वादी ओमप्रकाश द्वारा न्यायालय में गुहार लगाते हुए निष्पक्ष जांच करने की मांग की गई। न्यायालय द्वारा लोनी पुलिस को इस प्रकरण की निष्पक्ष जांच करने के आदेश दिए। और एक बार फिर जांच लोनी पुलिस के पास आ गई पुलिस की कार्य प्रणाली देखिए अदालत द्वारा बार-बार आदेश करने के बावजूद भी पुलिस ने अपना रवैया नहीं बदला और लोनी पुलिस द्वारा एक बार फिर से हत्या के इस मुकदमे में एफ आर लगा दी गई। लेकिन न्यायालय द्वारा पुलिस की इस जांच को सही नहीं मानते हुए वर्ष 2008 में आरोपियों को अदालत में हाजिर होने के लिए सम्मन जारी कर दिया गया। इसके बाद हत्या अभियुक्त अदालत में पेश ने होकर सम्मन के विरुद्ध धारा 482 के तहत हाईकोर्ट चले गए। उच्च न्यायालय ने आरोपियों को आदेश किया कि वह संबंधित अदालत में हाजिर होकर जमानत ले। हत्या अभियुक्त इस आदेश के बाद भी जिला न्यायालय में हाजिर नहीं हुए। और उच्च न्यायालय के आदेश के विरुद्ध वर्ष 2013 में उच्चतम न्यायालय चले गए। उच्चतम न्यायालय ने अभियुक्तों की याचिका को अपूर्ण मानते हुए इन्हें सक्षम न्यायालय में पेश होने का आदेश वर्ष 2015 में किया। उक्त हत्यारे उच्चतम न्यायालय के आदेश को धता बताते हुए सक्षम न्यायालय में पेश नहीं हुए। और गांव में ही रहकर अपने अवैध कार्य करते रहे। स्थानीय पुलिस से उक्त हत्यारों की सांठ-गांठ बहुत मजबूत थी। इसके बाद लोकल पुलिस ने वर्ष 2016 में अदालत को भ्रमित करने के लिए ग्राम प्रधान के फर्जी हस्ताक्षर व महोर लगाकर उक्त हत्यारों के भगोड़ा होने की लिखित सूचना संबंधित अदालत को देते हुए कहा कि इनको गिरफ्तार करना नामुमकिन है। पुलिस द्वारा इनको भगोड़ा होने की जानकारी अदालत को देने के बाद मृतक के भाई व इस मुकदमे के वादी ओम प्रकाश द्वारा हाई कोर्ट में याचिका दायर कर उक्त हत्या आरोपियों के गांव में ही रह कर अपना कारोबार करने के ठोस सबूत फोटोग्राफ व वीडियो आदि के जरिए दिए गए। उच्च न्यायालय द्वारा वर्ष 2016 में एसएसपी गाजियाबाद को आदेशित किया की इन मुलजिमों की गिरफ्तारी क्यों नहीं हो रही है। इस संबंध में एसएसपी गाजियाबाद उच्च न्यायालय में उपस्थित होकर शपथ पत्र दें। उच्च न्यायालय के इस आदेश के बाद पुलिस महकमें को मजबूरन हत्या आरोपियों को गिरफ्तार किया गया। तब जाकर उनके ऊपर हत्या का मुकदमा चला। इसके बाद भी उक्त हत्या आरोपियों द्वारा हाई कोर्ट में मामले को उलझाने के लिए एक रिट डाली गई । बृहस्पतिवार 10 अक्टूबर को अपर जिला जज इंदू द्विवेदी द्वारा 18 वर्ष बाद आरोपी राजेंद्र व रघुराज पुत्रगण श्यामलाल चाहत राम पुत्र रतिया बिजेंद्र पुत्र ननवा को आजीवन कारावास की सजा सुनाते हुए चारों पर 20-20 हजार रुपए का अर्थ दंड भी लगाया गया है। जबकि अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश द्वारा 307 के मुकदमे में आरोपी बनाए गए मृतक मनोज के साथी राकेश एवं ऋषि को साक्ष्यों के अभाव में बरी कर दिया गया है। आरोपियों द्वारा कानून के साथ खूब खिलवाड़ की गई लेकिन अदालत आखिर सच्चाई तक पहुंची और आरोपियों को दोषी मानते हुए आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई। मृतक के परिजनों ने अदालती कार्रवाई पर संतोष जताते हुए इस फैसले को न्याय पूर्ण बताया है। हालांकि उनका मानना है कि आरोपियों ने मामले को बहुत उलझने की कोशिश की लंबी कानूनी लड़ाई लड़नी पड़ी लेकिन आखिर जीत सच्चाई की हुई।
हत्या आरोपी चाहत राम 
हत्या आरोपी राजेंद्र प्रमुख 
हत्या आरोपी  रघुराज बैसोया

 

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