रविन्द्र बंसल प्रधान संपादक / जन वाणी न्यूज़
सुप्रीम कोर्ट ने लोनी बार एसोसिएशन, तहसील की याचिका पर किया नोटिस जारी
छह सप्ताह में राज्य सरकार को जवाब देने के निर्देश, विलंब पर याची को राहत
नई दिल्ली, 14 अक्टूबर। सुप्रीम कोर्ट ने बार एसोसिएशन, तहसील द्वारा दायर विशेष अनुमति याचिका पर सुनवाई करते हुए राज्य सरकार और अन्य प्रतिवादियों को नोटिस जारी किया है। यह याचिका इलाहाबाद उच्च न्यायालय के 25 अक्टूबर 2024 के आदेश (वाद संख्या 900/2022) के विरुद्ध प्रस्तुत की गई थी। शीर्ष अदालत ने प्रारंभिक सुनवाई के दौरान याचिका दाखिल करने में हुई देरी को भी याची पक्ष द्वारा दिए गए कारणों के आधार पर स्वीकार कर लिया।
मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली पीठ ने निर्देश दिया है कि राज्य सरकार छह सप्ताह के भीतर अपना पक्ष प्रस्तुत करे। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि याची पक्ष शासन के स्थायी अधिवक्ता के माध्यम से नोटिस की प्रति उपलब्ध करा सकता है, जिससे प्रक्रिया में सुगमता बनी रहे। आदेश पर सहायक रजिस्ट्रार दीपक सिंह और अंजू कपूर के हस्ताक्षर दर्ज हैं।
सुनवाई के समय याची पक्ष की ओर से अधिवक्ता एस.बी. टेलेकर, अशरफ आनंद चौधरी, पुलकित अग्रवाल, मो. अनस चौधरी और जाहिद ताज अली उपस्थित रहे।
लोनी क्षेत्र के निवासियों के लिए इसका क्या महत्व है
सुप्रीम कोर्ट द्वारा नोटिस जारी किया जाना एक सामान्य न्यायिक प्रक्रिया का हिस्सा है। इसका सीधा अर्थ यह है कि अदालत इस विषय को विस्तार से सुनने और संबंधित पक्षों का पक्ष जानने के लिए तैयार है।
यद्यपि यह आदेश किसी नए न्यायिक ढांचे, अदालत खोलने या किसी विशेष प्रशासनिक निर्णय का निर्देश नहीं है, फिर भी इससे यह स्पष्ट है कि सर्वोच्च न्यायालय ने इस विषय को गंभीरता से संज्ञान में लिया है। इससे संबंधित क्षेत्र के नागरिकों में यह भरोसा अवश्य बढ़ता है कि उनकी मांगें और विषय न्यायिक प्रणाली के समक्ष विधिक प्रक्रिया के अंतर्गत विचाराधीन हैं।
लोनी क्षेत्र के लोगों के लिए यह स्थिति इसलिए महत्वपूर्ण है कि न्यायपालिका द्वारा प्रक्रिया को आगे बढ़ाने से व्यवस्था में सुधार और न्यायिक सुविधाओं की सुगमता पर भविष्य में सकारात्मक चर्चा संभव हो सकती है। यह विषय अब सर्वोच्च न्यायालय की निगरानी में है और आगे होने वाली सुनवाई के बाद ही कोई ठोस दिशा निर्धारित होगी।
किसी भी प्रकार का अतिशयोक्तिपूर्ण दावा नहीं
यह स्पष्ट करना आवश्यक है कि सुप्रीम कोर्ट का यह आदेश—
किसी अदालत के तत्काल खुलने,
किसी भवन के निर्माण,
किसी विभाग के गठन,
अथवा किसी प्रत्यक्ष प्रशासनिक कदम के लिए
कोई निर्देश नहीं है।
ऐसे किसी दावे की न ही याचिका में पुष्टि है और न ही आदेश में उल्लेख।
यह खबर महज न्यायिक प्रक्रिया की मौजूदा स्थिति और उसके महत्व को लेकर है।
कोर्ट की गरिमा व प्रक्रिया का सम्मान
सुप्रीम कोर्ट और उच्च न्यायालय दोनों के आदेश संविधान व विधिक मर्यादाओं के अंतर्गत जारी होते हैं। इसलिए इस मामले में न्यायालयीन प्रक्रिया पूरी सम्मान के साथ आगे बढ़ रही है। अदालत के सामने सभी पक्षों को अपने-अपने तर्क रखने का अवसर मिलेगा और निर्णय विधिक तथ्यों के आधार पर ही होगा।
आगे की प्रक्रिया
राज्य सरकार छह सप्ताह में अपना जवाब दाखिल करेगी।
उसके बाद पीठ अगली सुनवाई पर याची व प्रतिवादी पक्षों की दलीलें सुनेगी।
आगे की दिशा अदालत के आदेश पर निर्भर होगी, जिसकी प्रतीक्षा सभी पक्ष विधिक गरिमा के साथ करेंगे।
सुप्रीम कोर्ट का यह कदम न्यायिक प्रक्रिया का सम्मानजनक और नियमित चरण है। इससे यह सुनिश्चित होता है कि अदालतें प्रत्येक पक्ष की बात सुनकर संतुलित और तथ्यपरक निर्णय लेने की दिशा में आगे बढ़ती हैं।
लोनी क्षेत्र के लोगों के लिए यह विषय इसलिए महत्व रखता है क्योंकि इससे न्यायिक मामलों से जुड़ी उनकी अपेक्षाएँ विधिक प्रक्रिया के दायरे में विचाराधीन हैं। अंतिम निर्णय अदालत द्वारा तथ्यों और तर्कों के आधार पर ही दिया जाएगा।
