रक्षाबंधन पर विशेष, एक प्रेरणादायक प्रसंग

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जन वाणी न्यूज़

    1. प्रयागराज में किसी घर के बाहर एक रिक्शा रुकता है
    1. उसमें से उतरकर एक भाई अपनी बहिन को आवाज लगाता है , जरा 12 रुपैया ले के तो आओ ।
    1. बहिन बाहर आकर पूछती है कि 12 रुपये काहे चाहिए तो भाई उत्तर देता है दुई रुपैया इस रिक्शे वाले को और 10 तुमको ।
    1. आखिर राखी बंधाई भी तो तुम्हें देना पड़ेगी ।
    1. बहिन की आंखें भाई के उस निश्छल प्रेम को देख छलछला आईं और चुपचाप बटुए से निकालकर 12 रुपये उन्हें दे दिए ।
    1. वे भाई – बहिन थे हिन्दी साहित्य के एक युग के महानायक और उसकी आत्मा क्रमशः पं सूर्यकांत त्रिपाठी ‘ निराला ‘ और उनकी मुंहबोली बहिन महादेवी वर्मा ।
    1. अनेक वर्षों बाद जब महादेवी जी को ज्ञानपीठ पुरस्कार मिला और उनसे किसी ने उसके साथ मिली राशि के बारे में पूछा तब महादेवी जी ने दुखी होकर कहा कि ये रुपये पहले मिल जाते तो वे निराला जी को पैसे के अभाव में समुचित इलाज न करवा पाने जैसी त्रासदी से बचा लेतीं ।
    1. उल्लेखनीय है निराला जी धनाभाव में अपना ठीक से इलाज नहीं करवा सके क्योंकि सरस्वती का वह मानस पुत्र अपने स्वाभिमान के चलते लक्ष्मी की साधना करना नहीं सीख सका । रक्षाबंधन का वह प्रसंग बरबस स्मृति पटल पर तैर गया ।
    1. पैसे के पीछे भागती कलम के इस दौर के कला साधक कितना भी क्यों न कमा लें लेकिन वे निराला जी की अभावों और कष्टों से भरी ज़िन्दगी की तुलना में गरीब ही कहलायेंगे ।
    1. महादेवी जी ने भी गांधी जी के एक उलाहने पर कवि सम्मेलनों से जीवन पर्यंत दूरी बनाए रखी ।
    1. वाकई बहुत रईस थे ऐसे लोग जिन्होंने जीवन भर सरस्वती की साधना करते हुए जो अर्जित किया उसे हम सबको देकर चले गए ।
    उनकी आर्थिक विपन्नता के समक्ष हमारी सम्पन्नता दो कौड़ी की है।

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