
अरुण को बचपन से ही खेती से लगाव था। छोटी उम्र में मां को खोने के बाद, वह अपने दादा-दादी के साथ पले-बढ़े और अक्सर अपने दादा को खेती में मदद किया करते थे। हालांकि उनके दादाजी उन्हें खेती से दूर ही रखते थे। और उन्हें खेतों में आने की इजाज़त भी बड़ी मुश्किल से देते थे।
लेकिन खेती से उनका प्यार जूनून में तब बदला जब वह 2011 में मशहूर जैविक कृषि वैज्ञानिक जी नम्मालवर से मिले। अरुण ने उनके जैविक ट्रेनिंग सेशन में भाग लेने का फैसला किया। जिसके बाद वह एक ऑर्गनिक फार्मिंग एक्सपर्ट बनकर कई दूसरे किसानों को भी जैविक खेती सिखाने में लग गए।
इस दौरान अरुण ने देखा कि देसी सब्जियों के बीज लुप्त हो रहे हैं और किसानों के पास उगाने के लिए देसी सब्जियों के बीज हैं ही नहीं।
इसी चिंता के साथ साल 2021 में उन्होंने देशभर में घूमकर बीज इकट्ठा करने का मन बनाया, लेकिन उस समय उनके पास सेविंग के नाम पर सिर्फ 300 रुपये थे। उन्होंने तमिलनाडु के किसानों और बीज रक्षकों से मिलना शुरू किया और धीरे-धीरे 80,000 किलोमीटर की यात्रा करके, 300 से अधिक देशी फल-सब्जियों के बीज जमा किए।
इस दौरान वह लोगों की जैविक खेती करनी भी सिखाते और अलग-अलग कृषि केंद्रों और बाजारों से बीज जमा करते। अरुण ने अब तक 500 किसानों को फ्री में दुर्लभ बीज भी दिए हैं।
लेकिन आज अरुण अपने गांव के एक छोटे से बगीचे में लुप्त हो चुकी देशी फल-सब्जियां उगा रहे हैं और “कार्पागथारू(Karpagatharu)” नाम के अपने छोटे से बीज बैंक के ज़रिए लोगों को बीज बेच भी रहे हैं। उनके बीज बैंक में लौकी की 15 किस्में, बीन्स की 20 किस्में, और टमाटर, मिर्च और तुरई की 10-10 किस्में सहित कई और सब्जियां शामिल है।