रविन्द्र बंसल प्रधान संपादक / जन वाणी न्यूज़
कर्नाटक के जंगल में रूसी महिला की गुफा-जीवन की गाथा खुली— आध्यात्मिक साधना से दस्तावेज़ी संकट तक
40 वर्षीय नीना कुटिना के साथ दो बेटियाँ जंगल में बिताए आध्यात्मिक पल, वीजा समाप्ति के बाद शुरु हुआ रजिस्ट्री और प्रवासन प्रक्रिया
गोकर्ण। कर्नाटक: एक असामान्य घटना ने सार्वजनिक और सामाजिक भावना को झिंझोड़ दिया है जब एक रूसी महिला, नीना कुटिना (40 वर्ष), और उसकी दो छोटी बेटियाँ (6 एवं 4 वर्ष) कर्नाटक के रामतीर्थ पहाड़ियों की गुफा में पाए गए। यह खोज 9 जुलाई 2025 को एक रूटीन पुलिस गश्त के दौरान हुई, जहां अधिकारियों को सूखे कपड़ों और रुद्र की मूर्ति गुफा के बाहर दिखी—यही संकेत था कि वहाँ कोई मानव मौजूद है।
जंगल जीवन: ध्यान, मधुर संगीत और प्राकृतिक संवाद
नीना ने पुलिस को बताया कि वह और उसकी बेटियाँ प्राकृतिक जीवन में “शांति और आध्यात्म” की खोज में थीं। उन्होंने नदी में नहाया, आग या गैस पर खाना बनाया, पेंटिंग की, गाने गाए, किताबें पढ़ीं और झरनों में नहाकर जीवन जिया। गुफा में नीना ने रुद्र की मूर्ति रखी थी, और प्रकृति से संबंध को प्राथमिक स्थान दिया।
“हम प्रकृति के साथ सद्भाव में थे; कोई सांप या जानवर हमें नहीं प्रताड़ित करता—जो वास्तव में खतरनाक हैं, वे इंसान हैं,” उन्होंने जवाब दिया जब पुलिस ने चेताया कि यह स्थान खतरनाक हो सकता है।
वीजा का कालान्तर और कानूनी जटिलताएँ
नीना भारत पहली बार 2016 में एक छह महीने के बिजनेस वीज़ा पर आई थी, जिसका समयसीमा 2017 में समाप्त हो गया। इसके बावजूद वह नेपाल गई और 2020 में भारत वापस लौटी, बिना किसी कानूनी दस्तावेज के।
पुलिस ने गुफा में ही उसका पासपोर्ट और वीजा बरामद किया—वे 2017 में ही समाप्त हो चुके थे।
अब प्रवासन प्रक्रिया शुरू कर दी गई है, और उन्हें एक महिला आश्रय गृह तथा विदेशी पंजीकरण कार्यालय (FRRO) के नेटवर्क में स्थानांतरित किया गया है। रूसी दूतावास को सूचित कर देपोर्टेशन प्रक्रिया की तैयारी की जा रही है।
व्यक्तिगत दुःख और सामाजिक अलगाव
नीना ने जड़ दर्द और व्यक्तिगत समस्याएं जैसे घनिष्ठों की मृत्यु का जिक्र किया, जिसने उन्हें दुनिया से दूर इस जीवन की ओर आकर्षित किया। अंतत: यह अनुभव केवल आध्यात्मिक नहीं, बल्कि व्यक्तिगत शांति की तलाश भी साबित हुआ।
इसके अतिरिक्त, इज़राइली पिता ब्रर गोल्डस्टीन से उसका संबंध था—लेकिन कानूनी और पारिवारिक विवादों के चलते दोनों का मिलन नहीं हो पाया।
भावनात्मक गूंज और सोशल मीडिया पर प्रतिक्रियाएं
नीना की गुफा-कहानी ने सोशल मीडिया और डिजिटल प्रकाशनों पर गहराई से लोगों को सोचने पर मजबूर कर दिया। कुछ लोग उसकी दृढ़ता और आत्मनिर्भरता की प्रशंसा कर रहे हैं, तो कुछ बच्चों की सुरक्षा पर चिंता व्यक्त कर रहे हैं। कई ने कहा, “उसे अपनी कहानी लिख देनी चाहिए।”
उसने थॉमस को संदेश भी भेजा कि:
हमारा शांतिपूर्ण जीवन गुफा में समाप्त हो गया—हमारा गुफा घर नष्ट हो गया।
नीना कुटिना की कहानी जीवन, आध्यात्म, दस्तावेज़ों की अनिश्चितता और प्रकृति से जुड़ाव की दिलचस्प संगति है। यह घटना हमें याद दिलाती है कि मानव जीवन कभी-कभी सामान्यतः परिभाषित नहीं हो पाता, और समाज उस विशुद्ध सरलता की ओर आश्चर्य और प्रश्न दोनों से देखता है।
अब, उसके प्रवासन और बच्चों की कल्याण की प्रक्रिया पर निगरानी बनी हुई है—क्या ये निर्णय मानवीय संवेदना और कानूनी प्रक्रिया के बीच संतुलन बना पाएगा?
