गाजियाबाद जिला जज की कोर्ट में हुई  जज और वकीलों को बीच आज की घटना को लेकर  वरिष्ठ अधिवक्ता सुरेंदर  कुमार की त्वरित प्रतिक्रिया

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                                    जन वाणी न्यूज़                                                  गाजियाबाद जिला जज की कोर्ट में हुई  जज और वकीलों को बीच आज की घटना को लेकर  वरिष्ठ अधिवक्ता सुरेंदर  कुमार की त्वरित प्रतिक्रिया                                                                                                                   संविधान द्वारा देशवासियों को उनके शारीरिक मानसिक आर्थिक सुरक्षा के लिए संविधान में मूल अधिकार सुरक्षित करके सुनिश्चित किए हैं।
देशवासियों और देश के नागरिकों के शारीरिक मानसिक आर्थिक मानवीय और संवैधानिक अधिकारों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए विधायिका कार्यपालिका और न्यायपालिका की संवैधानिक आधिकारियों ,पदाधिकारी की जिम्मेदारी जवाबदेही और उत्तरदायित्व सुनिश्चित किए गए।
जब देशवासियों के शारीरिक मानसिक आर्थिक और संपत्ति के अधिकारों की सशनिक प्रशासनिक अधिकारियों द्वारा सुनिश्चित कानूनी कार्रवाई या सनवाई नही किए जाने से हताश निराश होकर देशवासी अपने संवैधानिक विधिक और मानवीय अधिकारों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए अपने अधिकार संपति की सुरक्षा सुनिश्चित करने को, सनवाई के लिए न्यायपालिका में अधिवक्ताओं के माध्यम से अपने प्रार्थना पत्र/वाद करवाई सुनिश्चित करता है
न्यायपालिका में देशवासियों के विधिक संवैधानिक मूल अधिकारों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए जजमेंट करने से पहले सुनवाई का अधिकार अति आवश्यक प्राकृतिक न्याय के अधिकार ( natural justice) के लिए न्यायोंचित अधिकार है ।
न्यायाधीश अगर शिकायतकर्ता/वाद पर अधिवक्ता की विधिक आवाज को सुनवाई के अधिकार का सम्मान नहीं करता, तो ऐसा जज/जजमेंट बिना सुनवाई करना मनमानी है, नेचुरल जस्टिस की हत्या है ,संवैधानिक लोकतांत्रिक व्यवस्था की हत्या के समान है। तानाशाही है देशवासियों के संवैधानिक नागरिक मूल अधिकारों और विधिक अधिकारों की सुरक्षा के लिए देशवासियों और देश के नागरिकों की विधिक आवाज को विधि विधान के वक्ता ,प्रवक्ता और संवैधानिक अधिकारों के प्रणेता, कोर्ट ऑफिसर के रूप में अधिवक्ता रखते हैं शिकायत करता/वाद कारी की विधिक आवाज की सुनवाई ना करना, अनसुना करना, अनदेखी करना,न्याय उचित नहीं है अन्याय है, तानाशाही है, न्याय की हत्या है और ऊपर से विरोध के अधिकार को कुचलना के लिए न्यायालय कैंपस में पुलिस फोर्स द्वारा सम्मानित अधिवक्ताओं को घेर कर लाठीचार्ज करना कुर्सियों से मारना जानलेवा हमला करके सम्मानित अधिवक्ताओ से जबरन जानलेवा हमला कर न्यायालय, कोर्ट खाली करना, अधिवक्ता चैंबरों को खाली करना, क्या कहलाता है?
यह न्याय नहीं अन्याय है?
जब तक देशवासियों और देश के नागरिकों की संवैधानिक और विधिक आवाज को अधिवक्ता के रूप में निष्पक्ष और निडर तरीके से सम्मानित अधिवक्ताओं की स्वतंत्रता सुरक्षित नहीं?
न्याय जिंदा नहीं रह सकता?
संविधानिक अधिकार की सुरक्षा के लिए उनके अधिकारों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए न्यायालय में सुनवाई कर न्यायिक आदेश पारित किया जाना न्यायोचित अति आवश्यक है।
बिना सुनवाई आदेश पारित करना, पद स्थिति का दुरुपयोग है, न्यायिक कदाचार है, संविधान। और संविधानिक व्यवस्था के विरुद्ध खुला भ्रष्टाचार है अत्याचार है अतिचार है?
संवैधानिक लोकतंत्र की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए विधि विधान के वक्ता ,प्रवक्ता, अधिवक्ता का निडर निर्भीक होकर देशवासियों के संवैधानिक मूल अधिकारों और विधिक अधिकारों की आवाज उठाने के लिए कोर्ट ऑफिसर के रूप में सम्मानित अधिवक्ता के सम्मान और सुरक्षा सुनिश्चित करना बहुत जरूरी है?
“Advocate protection act”
जरूरी है।

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