करवा चौथ: सुहागिनों का अटूट विश्वास और प्रेम का पर्व

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रविन्द्र बंसल प्रधान संपादक / जन वाणी न्यूज़

करवा चौथ: सुहागिनों का अटूट विश्वास और प्रेम का पर्व

भारतीय परंपरा, नारी आस्था और वैवाहिक प्रेम का उत्सव

अवसर: करवा चौथ (कार्तिक कृष्ण पक्ष चतुर्थी

भारतीय संस्कृति में पर्व-त्योहार केवल परंपराएं नहीं, बल्कि जीवन की भावनाओं, संबंधों और विश्वासों का उत्सव हैं। इन्हीं में से एक है करवा चौथ, जो विशेष रूप से सुहागिन महिलाओं के लिए समर्पित त्योहार है। यह दिन न केवल पति-पत्नी के बीच प्रेम, समर्पण और अटूट विश्वास का प्रतीक है, बल्कि स्त्री शक्ति और त्याग का भी उत्सव है।

करवा चौथ का अर्थ और इतिहास

‘करवा चौथ’ नाम दो शब्दों से मिलकर बना है — ‘करवा’ अर्थात मिट्टी का बर्तन (जिसमें जल भरा जाता है) और ‘चौथ’ अर्थात चतुर्थी तिथि। यह पर्व कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को मनाया जाता है।
ऐतिहासिक मान्यता है कि इस दिन वीरांगना करवा ने अपने पति की रक्षा के लिए यमराज से प्रार्थना की थी और अपने पति को मृत्यु से बचा लिया था। तभी से इस व्रत का चलन आरंभ हुआ।

व्रत का महत्व

करवा चौथ का व्रत विवाहित महिलाएं अपने पति की दीर्घायु, सुख और समृद्धि के लिए करती हैं। प्रातःकाल सूर्योदय से पहले ‘सरगी’ खाई जाती है, जो सास द्वारा दी जाती है। इसके बाद महिलाएं पूरे दिन निर्जला उपवास रखती हैं — यानी न अन्न ग्रहण करती हैं, न जल पीती हैं।
संध्या समय करवा माता और चंद्रमा की पूजा कर के पति के हाथ से जल ग्रहण कर व्रत तोड़ा जाता है। यह परंपरा न केवल धार्मिक आस्था, बल्कि वैवाहिक जीवन की विश्वासपूर्ण डोर को भी मजबूत करती है।

पूजन विधि

1. सुबह सरगी: सास से मिले पकवान और फल का सेवन किया जाता है।

2. श्रृंगार और सोलह शृंगार: महिलाएं सोलह श्रृंगार करती हैं — लाल साड़ी, मेहंदी, बिंदी, चूड़ियां और सिंदूर।

3. करवा माता की पूजा: मिट्टी या धातु का करवा सजाकर उसमें जल भरकर देवी का आह्वान किया जाता है।

4. कथा श्रवण: करवा चौथ की कथा सुनी जाती है जिसमें वीरांगना करवा की कथा प्रमुख है।

5. चंद्र दर्शन: चंद्रमा को छलनी से देख कर, फिर पति को देख कर व्रत तोड़ा जाता है।

आधुनिक युग में करवा चौथ

आज के समय में यह पर्व परंपरा और आधुनिकता का संगम बन गया है। अब कई जगहों पर पति भी पत्नी के साथ व्रत रखते हैं, ताकि प्रेम और समानता का भाव बना रहे।
सोशल मीडिया के दौर में करवा चौथ अब केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि भावनात्मक उत्सव और सामाजिक ट्रेंड भी बन चुका है। परंतु इसका मूल भाव अब भी वही है — प्रेम, विश्वास और अटूट निष्ठा।

करवा चौथ का भावार्थ

करवा चौथ केवल एक व्रत नहीं, बल्कि यह सिखाता है कि संबंधों में विश्वास, त्याग और स्नेह कितना महत्वपूर्ण होता है। जब एक पत्नी बिना किसी स्वार्थ के अपने पति के लिए व्रत रखती है, तो वह जीवनसाथी के प्रति अपने निष्कलंक प्रेम की मिसाल पेश करती है।

 प्रेरणा

करवा चौथ भारतीय नारी की आस्था, विश्वास और प्रेम का प्रतीक है। यह त्योहार हर उस स्त्री को नमन करता है जो अपने परिवार और संबंधों के लिए समर्पण और स्नेह का उदाहरण बनती है।
चांद की रौशनी में झिलमिलाते दीपों के बीच जब कोई सुहागिन छलनी से अपने पति को देखती है, तो वह केवल एक रीति नहीं निभा रही होती — वह सदियों पुराने प्रेम और विश्वास की परंपरा को आगे बढ़ा रही होती है

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