रविन्द्र बंसल प्रधान संपादक / जन वाणी न्यूज़
अमेरिका के 50% टैरिफ का भारत पर असर
नई दिल्ली, 29 अगस्त अमेरिका द्वारा भारत से आने वाले आयातित उत्पादों पर 50 प्रतिशत टैरिफ लगाने का फैसला भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए एक बड़ा झटका साबित हो सकता है। यह कदम दोनों देशों के बीच व्यापारिक रिश्तों में तनाव को दर्शाता है और विशेषज्ञों का मानना है कि इसका सीधा असर भारत की GDP, रोजगार, निर्यात और रुपये की मजबूती पर पड़ेगा।
अर्थव्यवस्था पर सीधा प्रहार
आर्थिक विशेषज्ञों के मुताबिक यह टैरिफ भारत की GDP वृद्धि दर को लगभग 1 प्रतिशत अंक तक घटा सकता है। अमेरिकी बाज़ार भारत के लिए सबसे बड़ा निर्यात गंतव्य है, ऐसे में इस कदम से वस्त्र, गहने, समुद्री उत्पाद और रसायन जैसे क्षेत्रों पर गहरा असर पड़ेगा।
Jefferies की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत को इससे 55–60 अरब डॉलर तक का आर्थिक नुकसान हो सकता है।
सबसे ज़्यादा प्रभावित क्षेत्र
1. टेक्सटाइल और परिधान उद्योग – निर्यात लागत 30% तक बढ़ने से भारत बांग्लादेश और वियतनाम जैसे देशों से प्रतिस्पर्धा खो सकता है।
2. ज्वेलरी एवं रत्न – अमेरिका भारत का सबसे बड़ा खरीदार है। भारी टैरिफ से इस क्षेत्र का कारोबार बुरी तरह प्रभावित होगा।
3. समुद्री उत्पाद (विशेषकर झींगा) – भारत का प्रमुख निर्यात क्षेत्र है, जिस पर सीधा असर पड़ेगा।
4. रसायन और फुटवियर – इन पर भी बड़ा प्रहार होगा, जिससे MSMEs को झटका लगेगा।
मुद्रा और बाज़ार में हलचल
टैरिफ की घोषणा के बाद रुपया रिकॉर्ड 88.3 प्रति डॉलर के स्तर तक गिर गया। शेयर बाजार में भी गिरावट आई और विदेशी निवेशकों ने पूंजी निकासी तेज़ कर दी। इससे न केवल निर्यातक बल्कि आम निवेशक भी प्रभावित हुए।
रोजगार पर खतरा
भारत के निर्यात क्षेत्र में करोड़ों लोग काम करते हैं। टैरिफ लागू होने से MSMEs और लघु उद्योगों के सामने आदेशों की कमी और वित्तीय संकट की स्थिति बन सकती है। बैंकों द्वारा ऋण वितरण पहले से ही धीमा है, जिससे छोटे कारोबारियों के लिए स्थिति और कठिन हो सकती है।
भारत की रणनीति और संभावित उपाय
सरकार ने इस संकट से निपटने के लिए कई कदम उठाए हैं –
कर रियायतें और GST सुधार : छोटे व्यापारियों को राहत देने के लिए ₹12 अरब की इनकम टैक्स छूट और GST सरलीकरण लागू किया गया है।
निर्यात विविधीकरण : भारत अब अमेरिका पर निर्भरता घटाकर ब्रिक्स देशों, यूरोप, यूएई और ऑस्ट्रेलिया जैसे बाज़ारों की ओर रुख कर रहा है।
RBI का हस्तक्षेप : रुपये में गिरावट रोकने के लिए भारतीय रिज़र्व बैंक बाज़ार में सक्रिय हुआ है।
MSME पैकेज : छोटे कारोबारों को समर्थन देने के लिए क्रेडिट गारंटी स्कीम और विशेष राहत पैकेज तैयार किए जा रहे हैं।
विदेश नीति में बदलाव : अमेरिका से बढ़ते तनाव के बीच भारत ने चीन, रूस और अन्य साझेदारों से व्यापारिक सहयोग बढ़ाने पर जोर देना शुरू किया है।
अमेरिका का यह निर्णय केवल भारत के निर्यातकों के लिए ही नहीं, बल्कि वैश्विक सप्लाई चेन के लिए भी एक झटका है। भारत के सामने चुनौती यह है कि वह किस तरह अपनी अर्थव्यवस्था को इस झटके से उबारते हुए नए अवसर तलाशे। विशेषज्ञों का मानना है कि दीर्घकालीन समाधान निर्यात बाजारों के विविधीकरण, आत्मनिर्भरता और वैश्विक साझेदारी को मजबूत करने में ही निहित है।
