शिक्षा विभाग में भ्रष्टाचार होगा तो देश की भावी पीढ़ी से ईमानदारी और शिष्टाचार की उम्मीद करना बेमानी

0
110
                                  जन वाणी न्यूज़                              शिक्षा विभाग में भ्रष्टाचार होगा तो देश की भावी पीढ़ी से ईमानदारी और शिष्टाचार की उम्मीद करना बेमानी
आरटीई के तहत गरीब बच्चों को निजी स्कूलों में दाखिला न दिला पाने के मूल में भी छिपा है भ्रष्टाचार।
भ्रष्टाचार की वजह से नियम, कायदे और कानूनों को लागू करने के लिए शिक्षा अधिकारी नहीं बना पाते हैं दबाव
-कर्मवीर नागर प्रमुख
गाजियाबाद। जिस देश और प्रदेश के उस शिक्षा विभाग में ही आकंठ भ्रष्टाचार व्याप्त हो जहां से इस देश की भावी पीढ़ी शिक्षा दीक्षा लेकर देश को प्रगति के पथ पर ले जाने का काम करेंगी तो ऐसे में उस देश को विश्व गुरु बनने की बातें अभी तो काल्पनिक ही साबित होती नजर आती हैं। देश के जो युवा कर्णधार शैक्षिक जीवन के प्रारंभिक दौर में ही शिक्षा विभाग में व्याप्त भ्रष्टाचार को देख रहे हों तो उनसे ईमानदार और शिष्टाचारी होने की उम्मीद रखना बेमानी नजर आती है। जिसने रिश्वत के बल पर गैर मान्यता प्राप्त स्कूलों को संचालित होते देखा हो, जिसने शिक्षा विभाग के अधिकारियों को निजी शिक्षण संस्थाओं के हाथों की कठपुतली बनते देखा हो, जिन्होंने आरटीई के तहत गरीब बच्चों को निजी स्कूलों द्वारा दाखिला न देने पर भी शिक्षा विभाग के अधिकारियों की बेचारगी देखी हो, जिसने निजी स्कूलों को सरकार के शुल्क नियामक अधिनियम की धज्जियां उड़ाते हुए देखा हो, जिसने शिक्षा विभाग के अधिकारियों की निजी स्कूलों के साथ सांठ-गांठ के बूते संचालित गैर मान्यता प्राप्त स्कूलों में पढ़कर बोर्ड परीक्षा का आवेदन फॉर्म मान्यता प्राप्त स्कूलों को रिश्वत देकर भरने का स्वयं अनुभव प्राप्त किया हो, जिसने स्कूलों की मान्यता प्रदान करने के लिए भी शिक्षा अधिकारियों को रिश्वत लेने की बातें सुनी हो, जिसने एडिड स्कूलों में रिक्त पदों पर नियुक्ति के लिए शिक्षा विभाग के अधिकारियों द्वारा रिश्वत लेने की बातें सुनी हों, जिसने सरकार की तरफ से स्कूलों को विभिन्न मदों में प्राप्त होने वाली धनराशि से कमीशन खोरी की बंदरबांट होते देखी हो तो शायद ऐसे में देश की उस नई पीढ़ी और कर्णधारों पर तब तक उंगली उठाना उचित नहीं होगा जब तक सरकारें शिक्षा विभाग में व्याप्त भ्रष्टाचार पर पूरी तरह से अंकुश नहीं लगा पायेंगी।
अगर उत्तर प्रदेश के शिक्षा विभाग पर ही नजर डालें तो उत्तर प्रदेश के माननीय मुख्यमंत्री की भ्रष्टाचार के विरुद्ध जीरो टॉलरेंस नीति के बावजूद शिक्षा विभाग में भ्रष्टाचार का आलम यह है कि शिक्षा सत्र के प्रारंभ में गैर मान्यता स्कूलों के विरुद्ध कार्यवाही करने का ढोल पीटने वाले शिक्षा विभाग के जनपद स्तरीय अधिकारी गैर मान्यता प्राप्त स्कूलों के शरण में आते ही वर्ष भर के लिए चिरनिद्रा में चले जाते हैं। शिक्षा विभाग में व्याप्त भ्रष्टाचार का आलम यह है कि गैर मान्यता प्राप्त स्कूलों के विरुद्ध कार्यवाही किया जाना तो बहुत दूर की बात है, शिक्षा विभाग के अधिकारी उस तरफ आंख उठाकर देखना भी मुनासिब नहीं समझते। यहां तक कि जो शिक्षण संस्थाएं मान्यता के लिए आवेदन करती हैं उन्हें भी मजबूरन भ्रष्टाचारी रास्ते से गुजरना पड़ता है अन्यथा मान्यता फाइलें डंप कर दी जाती हैं।
अगर उदाहरण के तौर पर जनपद गौतम बुद्ध नगर के शिक्षा विभाग पर नजर डालें तो वर्तमान में जिला स्तरीय दोनों शिक्षा अधिकारियों की तैनाती के बाद लोगों को उम्मीद जगी थी कि अब किसान और गरीबों के बच्चों को नामचीन निजी शिक्षण संस्थानों में सरकारी रियायतों का लाभ मिल सकेगा। लेकिन पुराने ढर्रे पर चल पड़े शिक्षा विभाग के इन दोनों अधिकारियों से भी अब लोगों को निराशा ही हाथ लगती नजर आ रही है। बहरहाल जो भी है इन अधिकारियों का निजी स्कूलों पर सरकारी आदेशों का अनुपालन कराने हेतु कोई खासा दबाव और प्रभाव अभी तक नजर नहीं आया है। इसीलिए तो गौतमबुद्ध नगर का शिक्षा विभाग आरटीई के तहत गरीब बच्चों को दाखिला दिलाने एवं उत्तर प्रदेश सरकार के शुल्क नियामक अधिनियम को लागू कराने में लाचार नजर आ रहा है। गौतम बुद्ध नगर में जहां सीबीएसई और यूपी बोर्ड की बगैर मान्यता के प्राइमरी स्कूल संचालित करने वाले और हाई स्कूल और इंटरमीडिएट की खुलेआम कक्षाएं संचालित करने वालों की भरमार है वहीं गैर मान्यता प्राप्त स्कूलों में पढ़ रहे बच्चों से मोटी धनराशि लेकर हाई स्कूल और इंटर की बोर्ड परीक्षा के आवेदन फॉर्म भरने वालों की भी संख्या बहुतायत में हैं। इस बात को कतई नही नकारा जा सकता कि यह बात शिक्षा विभाग के अधिकारियों की जानकारी में न हो। लेकिन नियम, कायदे और कानूनों की शिक्षा विभाग के अधिकारियों द्वारा की गई अनदेखी को अब तो बस यह कहकर इतिश्री कर दी जाती है कि हमाम में सब नंगे हैं। यह अत्यंत गंभीर विषय है कि सरकारी एक्ट और नियमों का उल्लघंन करने के बावजूद भी निजी शिक्षण संस्थाओं पर शिक्षा अधिकारियों का कोई खौफ और दबाव नजर नहीं आता अन्यथा पुराने समय में सरकारी स्कूलों में शिक्षा पाए लोगों ने वह दिन भी देखे हैं जब शिक्षा विभाग का डिप्टी स्तर का अधिकारी किसी स्कूल का निरीक्षण करने पहुंच जाता था तो तहलका मच जाया करता था। लेकिन आज किसी मंत्री के आने पर भी बहुत ज्यादा हलचल नजर नहीं आती। इसीलिए शिक्षा विभाग में व्याप्त भ्रष्टाचार की वजह से देश का भविष्य संवारने वाली भावी पीढ़ी का ईमानदार और शिष्टाचारी होना भी संदेहास्पद नजर आने लगा है।
उत्तर प्रदेश के शिक्षा विभाग में व्याप्त इस भ्रष्टाचार को खत्म करना इसलिए अत्यंत आवश्यक है क्योंकि दशकों के लंबे संघर्षों और न्यायिक प्रक्रिया के बाद उत्तर प्रदेश की अयोध्या नगरी में मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम मंदिर का निर्माण करने में भले ही हम सफल हो गए हों लेकिन सही मायने में इस मंदिर निर्माण का असली लक्ष्य तभी पूरा होगा जब मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम भगवान के चरित्र में समाहित ईमानदारी, त्याग, तपस्या, धैर्य और आज्ञाकारी जैसे सद्गुणों का पाठ पढकर भावी पीढ़ी ईमानदारी और शिष्टाचार के मार्ग पर चलना प्रारंभ करेगी जिसमें उत्तर प्रदेश का शिक्षा विभाग महती भूमिका निभा सकता है। इसमें कोई दो राय नहीं कि यह उस शिक्षा विभाग में व्याप्त भ्रष्टाचार से मुक्ति के बाद ही संभव हो सकेगा जहां से भावी पीढ़ी की प्रथम शिक्षा दीक्षा और चरित्र निर्माण की शुरुआत होती है।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here