खाकी में इंसानियत” — जब इंस्पेक्टर ने थाम ली दुधमुंही बच्ची, मां ने पूरा किया छठ व्रत

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रविन्द्र बंसल प्रधान संपादक / जन वाणी न्यूज़

खाकी में इंसानियत” — जब इंस्पेक्टर ने थाम ली दुधमुंही बच्ची, मां ने पूरा किया छठ व्रत

गोमती तट के लक्ष्मण मेला मैदान पर उगते सूर्य को अर्घ्य देते समय इंसानियत की मिसाल बने इंस्पेक्टर विक्रम सिंह

लखनऊ, 29 अक्टूबर। लोक आस्था के महापर्व छठ पूजा के अवसर पर आज सुबह लक्ष्मण मेला मैदान स्थित गोमती तट पर लाखों श्रद्धालु महिलाओं ने उगते सूर्य को अर्घ्य देकर पूजा-अर्चना की। श्रद्धा, आस्था और भक्ति से ओतप्रोत इस दृश्य के बीच एक ऐसी तस्वीर उभरी जिसने हर किसी का दिल छू लिया — यह तस्वीर थी ‘खाकी में इंसानियत’ की।

सुबह के समय जब सूर्य देव के दर्शन का क्षण निकट था, एक महिला श्रद्धालु अपनी गोद में दुधमुंही बच्ची को लेकर खड़ी थी। एक ओर व्रत का अंतिम संकल्प पूरा करने की व्याकुलता थी, तो दूसरी ओर मासूम बच्ची को छोड़ने का कोई उपाय नहीं। मां की ममता और व्रत धर्म के बीच वह स्त्री असमंजस में थी — कभी आसमान की ओर देखती, तो कभी गोमती के जल में अपनी छवि।

इसी बीच, ड्यूटी पर तैनात इंस्पेक्टर विक्रम सिंह की नज़र उस महिला पर पड़ी। उन्होंने बिना कुछ कहे उस क्षण उसकी परेशानी को समझ लिया। तुरंत आगे बढ़े, मुस्कुराते हुए महिला से इशारा किया, और बच्ची को अपनी गोद में उठा लिया।

सूर्य की किरणें जब जल पर झिलमिलाने लगीं, महिला ने निश्चिंत होकर सूर्य को अर्घ्य दिया। उधर इंस्पेक्टर विक्रम सिंह ने बच्ची को स्नेहपूर्वक गोद में संभाले रखा — न कोई औपचारिकता, न दिखावा, बस एक सच्चा मानवीय भाव।

यह दृश्य देख आसपास मौजूद श्रद्धालु भी भावुक हो उठे। कई लोगों ने अपने मोबाइल कैमरे से यह क्षण कैद किया, पर उस पल का संदेश हर दिल में अंकित हो गया — “फर्ज़ के साथ इंसानियत भी निभाना खाकी की असली पहचान है।”

लोगों ने कहा कि इस तरह के कार्य समाज में पुलिस की संवेदनशील छवि को नई दिशा देते हैं। एक श्रद्धालु महिला ने कहा, “जहां ज्यादातर लोग अपने काम तक सीमित रहते हैं, वहां इस तरह का व्यवहार भगवान की सेवा से कम नहीं।”

गोमती तट पर उस दिन की सुबह सिर्फ पूजा का नहीं, बल्कि मानवता के सूर्योदय का प्रतीक बन गई।

 

छठ पर्व की इस मार्मिक घटना ने यह सिखाया कि जब इंसानियत का सूरज उगता है, तो हर दिल में प्रकाश फैल जाता है — चाहे वह खाकी वर्दी में ही क्यों न हो।

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