राज्य की ओर से विशेष लोक अभियोजक (पाक्सो एक्ट) संजीव बखरवा ने अदालत में सशक्त पैरवी की। प्रभावी अभियोजन कार्य और सबूतों की पेशी के चलते अभियुक्त दोषी सिद्ध हुआ।
रविन्द्र विन्द्र बंसल प्रधान संपादक / जन वाणी न्यूज़
गाजियाबाद: नाबालिग से दुष्कर्म के दोषी को 20 वर्ष का कठोर कारावास, 60 हजार रुपये का अर्थदंड
गाजियाबाद। 29 सितम्बर नाबालिग बच्ची के साथ दुष्कर्म के करीब दस वर्ष पुराने मामले में गाजियाबाद की विशेष पाक्सो (POCSO) अदालत ने दोषी को सख्त सजा सुनाई है। विशेष न्यायाधीश पाक्सो एक्ट/अपर सत्र न्यायाधीश कोर्ट संख्या-02, गाजियाबाद ने सोमवार को निर्णय सुनाते हुए अभियुक्त भरतपाल को 20 वर्ष के कठोर कारावास और कुल 60 हजार रुपये के अर्थदंड से दंडित किया।
अदालत ने आदेश दिया कि धारा 5एम/6 पाक्सो एक्ट के अंतर्गत अभियुक्त को 20 वर्ष का कठोर कारावास और 50 हजार रुपये का अर्थदंड अदा करना होगा। अर्थदंड अदा न करने पर उसे एक वर्ष का अतिरिक्त कारावास भुगतना पड़ेगा।
साथ ही, धारा 354(क) भारतीय दंड संहिता के तहत भी उसे 3 वर्ष का कारावास और 10 हजार रुपये का अर्थदंड लगाया गया है। इस अर्थदंड के अदा न होने की स्थिति में अभियुक्त को 3 माह का अतिरिक्त कारावास भुगतना होगा।
मामला और घटनाक्रम
थाना लोनी, कमिश्नरेट गाजियाबाद में मुकदमा अपराध संख्या 1023/2015 दर्ज हुआ था। मामले के अनुसार, वर्ष 2015 में अभियुक्त भरतपाल ने नाबालिग बच्ची के साथ दुष्कर्म की घटना को अंजाम दिया था। परिजनों की शिकायत पर पुलिस ने तत्काल मुकदमा दर्ज कर जांच शुरू की।
मामले की गंभीरता को देखते हुए इसे पाक्सो अधिनियम के तहत दर्ज कर विशेष अदालत में पेश किया गया। अभियुक्त की गिरफ्तारी के बाद लंबे समय तक सुनवाई चली और अंततः अदालत ने अभियोजन पक्ष की दलीलों और सबूतों को मानते हुए दोषी को सजा सुनाई।
अभियोजन की भूमिका
राज्य की ओर से विशेष लोक अभियोजक (पाक्सो एक्ट) श्री संजीव बखरवा ने अदालत में सशक्त पैरवी की। प्रभावी अभियोजन कार्य और सबूतों की पेशी के चलते अभियुक्त दोषी सिद्ध हुआ।
पीड़िता के लिए न्याय
अदालत के इस फैसले से पीड़िता और उसके परिवार को न्याय मिला है। अदालत ने स्पष्ट किया कि नाबालिगों के साथ दुष्कर्म जैसी जघन्य वारदात समाज के लिए कलंक हैं और ऐसे अपराधियों को कड़ी से कड़ी सजा दी जानी चाहिए ताकि समाज में निवारक संदेश पहुंचे।
> यह निर्णय न केवल पीड़ित परिवार के लिए राहत की बात है बल्कि ऐसे मामलों में न्यायपालिका की संवेदनशीलता और कठोर रुख को भी दर्शाता है।
