रविन्द्र बंसल प्रधान संपादक / जन वाणी न्यूज़
ठेले पर पिता का शव: गरीबी की मार से झकझोर देने वाली घटना
महराजगंज। जनपद से एक हृदय विदारक घटना सामने आई है। यहाँ दो मासूम भाई – जिनकी उम्र मात्र 10 और 14 वर्ष है – अपने पिता का अंतिम संस्कार करने के लिए पैसे न होने की वजह से मजबूर होकर शव को ठेले पर रखकर सड़कों पर भटकते रहे। यह दृश्य देखकर हर किसी का हृदय पसीज उठा।
गरीबी और लाचारी की इस मार्मिक घटना ने समाज की कठोर सच्चाई को उजागर कर दिया है। जहाँ बच्चों के सिर से पिता का साया उठ गया, वहीं माँ की ममता और सहारा पहले से ही न होने के कारण वे पूरी तरह असहाय हो गए। अंतिम संस्कार जैसे सबसे बड़े धार्मिक कर्तव्य के लिए भी जब पैसे न जुटा सके, तब उन्होंने मजबूरी में यह कदम उठाया।
दो मुस्लिम भाइयों की मदद से अंतिम संस्कार कराया गया। लेकिन इस घटना ने एक गहरा प्रश्न छोड़ दिया है – क्या गरीबी इतनी बड़ी हो सकती है कि इंसान अपने प्रियजन को सम्मानजनक विदाई भी न दे पाए?
यह घटना सिर्फ महराजगंज ही नहीं, पूरे समाज और प्रशासन की संवेदनाओं को झकझोरने वाली है। यह हमें याद दिलाती है कि ज़रूरतमंदों तक मदद पहुँचाने के लिए व्यवस्था और समाज दोनों को संवेदनशील होना पड़ेगा, ताकि भविष्य में किसी को ऐसी विवशता से न गुजरना पड़े।
गरीबी की मजबूरी में पिता का शव ठेले पर ले जाते इन बच्चों की तस्वीर मानवता से एक सवाल करती है – क्या हम सचमुच संवेदनशील समाज हैं?
बच्चों के पिता ठेले पर चूड़ी-बिंदी की फेरी लगाते थे पिता, बीमार पड़े तो वो भी काम हुआ बंद, मां का पहले ही निधन निधन हो चुका है , अनाथ हो गए 3 नाबालिग मासूम
पिता शव को ठेले पर लेकर भटकते रहे मासूम
पिता की मौत के बाद अंतिम संस्कार के लिए ठेले पर शव लेकर भटक रहे तीन नाबालिग बच्चों के आंसुओं ने लोगों को गमगीन तो किया, लेकिन मदद के लिए किसी के कदम आगे नहीं बढ़े। पड़ोसियों ने जहां मुंह फेर लिया, वहीं रिश्तेदारों ने भी ऐसे बुरे वक्त में बच्चों का साथ छोड़ दिया। नगर पालिका और प्रशासन की संवेदनहीनता फिर साबित हुई। यह घटना महराजगंज के नौतनवा नगर पालिक के राजेंद्र नगर वार्ड की है।
जानकारी के मुताबिक, नौतनवा नगर पालिका के वार्ड राजेंद्र नगर वार्ड निवासी लव कुमार पटवा का शनिवार को लंबी बीमारी के बाद निधन हो गया। वे हृदय रोग से पीड़ित थे। इनकी पत्नी का भी 6 महीने पहले निधन चुका है। लव कुमार के पटवा के तीन बच्चे हैं। बड़ा बेटा राजवीर (14 वर्ष)है, छोटा बेटा देवराज (10 वर्ष) और एक बेटी है। लव कुमार चूड़ी-बिंदी आदि सामान की फेरी लगाते थे। गांव-गांव घूमकर वह ये सब सामान बेचते थे। इसी से परिवार का गुजारा होता था। पिछले 4 महीने से उन्होंने बिस्तर पकड़ लिया था। और शनिवार को उनकी मृत्यु हो गई।
ठेले पर पिता का शव, नंगे पांव बच्चों का संघर्ष: पिता की मौत के बाद दोनों बेटों पर मानों दुखों का पहाड़ टूट पड़ा। उनके पास इतने भी पैसे नहीं थे, कि वे पिता का अंतिम संस्कार कर सकें. लाचार और बेबस होकर दोनों बच्चों ने पिता के शव को फेरी लगाने वाले ठेले पर रखा और लोगों से मदद की उम्मीद में निकल पड़े। यहीं से समाज का असली चेहरा दिखने लगा। पड़ोसियों ने भी इन बच्चों की कोई मदद नहीं की।
श्मशान कब्रिस्तान- में मिला यह जवाब
राह चलते लोगों ने जब बच्चों की यह हालत देखी तो उनका दिल जरूर पसीजा, लेकिन मदद के नाम पर किसी के कदम आगे नहीं बढ़ सके। रोते-बिलखते बच्चे श्मशान घाट पहुंचे। वहां शव जलाने की लकड़ी न खरीद पाने की वजह से दाह-संस्कार के लिए मना कर दिया गया। फिर यह दोनों बच्चे पिता का शव लेकर पास के कब्रिस्तान गए। वहां भी यह कहकर इन्हें सुपुर्द-ए-खाक नहीं किया गया, कि मरने वाला हिंदू था।
दो युवकों ने कराया अंतिम
संस्कार: इन बच्चों की बेबसी की जानकारी नगर पालिक के बिस्मिल नगर वार्ड सभासद प्रतिनिधि राशिद कुरैशी और राहुल नगर वार्ड सभासद वारिस कुरैशी को मिली। दोनों मौके पर पहुंचे और बच्चों की मदद की। शव जलाने की लकड़ी व आवश्यक सामग्री का इंतजाम कराया।
शव को श्मशान घाट ले जाया गया। वहां रात हिंदू रीति-रिवाज से मृतक का दाह-संस्कार कराया गया। क्रिया-कर्म के बाद दोनों बच्चों को उनके घर पहुंचाया गया। तब मासूमों की आंख में आंसू तो थे, लेकिन इस बात का संतोष भी था कि पिता का अंतिम संस्कार सम्मानजनक तरीके से हो गया।
घर की हालत दयनीय, बच्चे नहीं करते पढ़ाई: स्थानीय लोगों ने बताया कि इनके घर की हालत बहुत दयनीय है। पिता की बीमारी के बाद परिवार पूरी तरह से बिखर गया। दोनों बच्चे भी पिता के साथ उनके काम में मदद करते, यही वजह थी, कि वे कभी स्कूल नहीं जा सके। मां की मौत के बाद बच्चों का और बुरा हाल हो गया, क्योंकि इन्हें खाना भी अपने हाथ से बनाना पड़ता था। इनका कोई नजदीकी रिश्तेदार कभी मिलने के लिए नहीं आता था।
पिता की बीमारी से परेशान बच्चे अपने भरण पोषण के लिए पिता की तरह ही फेरी लगाने लगे, लेकिन इतनी कमाई नहीं हो पाती थी, कि दो वक्त की रोटी भी ठीक से मिल सके। अब यह तीनों बच्चे अनाथ हो गए हैं। कोई इनके आगे-पीछे नहीं है। इनके पास पिता की निशानी के तौर पर अब वही ठेला भर बचा है, जो शायद इनकी जिंदगी की गाड़ी को धीरे-धीरे ही सही, आगे बढ़ा सके।
क्षेत्र में हर किसी की जुबान पर इस घटना की चर्चा है
इस घटना ने सभी लोगों को झकझोर दिया है। चर्चा इस बात की भी है, कि गरीब परिवार की मदद करने के बजाय हर जिम्मेदार तंत्र खामोश रहा। लोगों का कहना है, कि गरीबी की मार झेल रहे इन बच्चों का संघर्ष समाज को आईना दिखाने वाला है। वहीं, दो मुस्लिम युवकों की इंसानियत को भी सराहा जा रहा है।
