सम्राट मिहिर भोज: एक महान राष्ट्रनायक ( जयंती अवसर पर विशेष)

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रविन्द्र बंसल प्रधान संपादक / जन वाणी न्यूज़           

सम्राट मिहिर भोज: एक महान राष्ट्रनायक
( जयंती अवसर पर विशेष)

 

प्रस्तावना

भारत के गौरवशाली इतिहास में सम्राट मिहिर भोज का नाम स्वर्ण अक्षरों में दर्ज है। प्रतिहार वंश के इस महान सम्राट ने न केवल अपने साम्राज्य का विस्तार किया, बल्कि भारतीय संस्कृति, धर्म और सामाजिक मूल्यों की रक्षा का भी अद्वितीय कार्य किया। उनकी जयंती हमें अपने इतिहास, गौरव और आत्मसम्मान को याद करने का अवसर देती है।

 

प्रारंभिक जीवन

सम्राट मिहिर भोज का जन्म 9वीं शताब्दी में प्रतिहार वंश में हुआ। उनके पिता नागभट्ट द्वितीय और दादा वत्सराज पहले ही शक्तिशाली शासक रहे थे। मिहिर भोज ने युवावस्था में ही सैन्य और प्रशासनिक कार्यों में दक्षता दिखाई और बाद में गद्दी संभालते ही अपने पराक्रम का लोहा मनवाया।

 

शासनकाल और उपलब्धियां

सम्राट मिहिर भोज (836 ई. – 885 ई.) का शासनकाल उत्तर भारत के इतिहास का स्वर्ण युग माना जाता है।

उन्होंने अरब आक्रमणकारियों और तुर्कों के लगातार आक्रमणों को पराजित कर भारत की सीमाओं की रक्षा की।

उनके साम्राज्य की सीमाएँ सिंधु नदी से बंगाल की खाड़ी तक और हिमालय से नर्मदा नदी तक फैली थीं।

वे अपने समय में सबसे शक्तिशाली सम्राट थे और विदेशी यात्रियों ने उन्हें “भारत का सम्राट” कहा।

कला, स्थापत्य और साहित्य को उनके शासनकाल में विशेष प्रोत्साहन मिला।

 

धार्मिक और सांस्कृतिक योगदान

मिहिर भोज को “आदि वराह” का परम भक्त माना जाता था। उन्होंने अनेक वराह मंदिरों का निर्माण करवाया और हिन्दू संस्कृति के संरक्षण में योगदान दिया। वे सभी धर्मों और पंथों का सम्मान करते थे, जिससे उनके साम्राज्य में समानता और सहिष्णुता का वातावरण रहा।

 

सम्राट की विरासत

आज भी देश के विभिन्न हिस्सों में सम्राट मिहिर भोज की स्मृति में मूर्ति, स्मारक और जयंती समारोह आयोजित किए जाते हैं। उनकी वीरता और प्रशासनिक क्षमता भारतीय युवाओं के लिए प्रेरणा का स्रोत है।

 

सम्राट मिहिर भोज की जयंती हमें यह संदेश देती है कि भारत की एकता, अखंडता और संस्कृति की रक्षा के लिए हमें सदैव सजग रहना चाहिए। उनका जीवन हमें सिखाता है कि साहस, संगठन और धर्मनिष्ठा के बल पर कोई भी शासक इतिहास में अमर हो सकता है।

सम्राट मिहिर भोज की जयंती पर उन्हें शत्-शत् नमन!

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