रविन्द्र बंसल प्रधान संपादक / जन वाणी न्यूज़
आस्था और सूर्योपासना का महापर्व — छठ पूजा आज से आरंभ
चार दिवसीय पर्व में व्रतियों का संयम, श्रद्धा और पर्यावरण संरक्षण का अद्भुत संगम
गाजियाबाद, 27 अक्टूबर सूर्य उपासना के अद्वितीय और लोकआस्था से ओत-प्रोत पर्व छठ महापर्व की शुरुआत आज नहाय-खाय के साथ हो रही है। बिहार, उत्तर प्रदेश, झारखंड और नेपाल के तराई क्षेत्रों सहित पूरे देश में इस पर्व की तैयारियां पूर्ण हो चुकी हैं। गंगा, यमुना, सरयू और अन्य पवित्र नदियों के घाटों पर सफाई और सजावट का कार्य युद्धस्तर पर किया गया है।
चार दिवसीय पर्व की धार्मिक क्रमबद्धता
छठ पूजा कुल चार दिनों तक चलती है, जिनमें हर दिन का अपना विशेष धार्मिक और
आध्यात्मिक महत्व होता है
—1. पहला दिन — नहाय-खाय (27 अक्टूबर)
इस दिन व्रती (उपवास करने वाले) शुद्ध जल से स्नान कर पवित्रता के साथ घर में प्रसाद पकाते हैं। व्रती केवल एक बार भोजन करते हैं जो बिना लहसुन-प्याज के बनता है। यह दिन आत्मशुद्धि और संकल्प का प्रतीक होता है।
2. दूसरा दिन — खरना (28 अक्टूबर)
इस दिन व्रती दिनभर निर्जला उपवास रखकर शाम को गंगा या किसी जलाशय से जल लाकर घर में खीर, रोटी और गुड़ से बना प्रसाद बनाते हैं। खरना के बाद 36 घंटे का निर्जला उपवास प्रारंभ होता है।
3. तीसरा दिन — संध्या अर्घ्य (29 अक्टूबर)
यह छठ पर्व का सबसे महत्वपूर्ण दिन होता है। व्रती पूरे परिवार और समुदाय के साथ घाटों या तालाबों पर जाकर डूबते सूर्य को अर्घ्य देते हैं। महिलाएं गीत गाती हैं — “कांच ही बांस के बहंगिया, बहंगी लचकत जाए…” — जो लोकआस्था का जीवंत प्रतीक है।
4. चौथा दिन — उषा अर्घ्य (30 अक्टूबर)
अंतिम दिन उगते सूर्य को अर्घ्य देकर छठ मैया से परिवार की सुख-समृद्धि, संतान की दीर्घायु और समाज में कल्याण की कामना की जाती है। इसके बाद व्रती जल ग्रहण कर उपवास तोड़ते हैं, जिसे पारण कहा जाता है।
पौराणिक और ऐतिहासिक संदर्भ
छठ पर्व का उल्लेख ऋग्वेद में सूर्य उपासना के रूप में मिलता है। माना जाता है कि इस पूजा की शुरुआत त्रेतायुग में हुई थी। कथा के अनुसार, जब भगवान श्रीराम और माता सीता अयोध्या लौटे, तब माता सीता ने कार्तिक शुक्ल षष्ठी के दिन सूर्य देव की पूजा कर रामराज्य की सुख-समृद्धि की कामना की थी।
इसी प्रकार, महाभारत काल में कुंती और द्रौपदी द्वारा भी सूर्य की उपासना का उल्लेख मिलता है, जिससे संतान और समृद्धि की प्राप्ति हुई।
आस्था, पर्यावरण और सामाजिक एकता का प्रतीक
छठ पूजा न केवल एक धार्मिक अनुष्ठान है, बल्कि प्रकृति और पर्यावरण के संतुलन का भी प्रतीक है। सूर्य को ऊर्जा स्रोत और जल को जीवन का आधार मानकर इस पूजा में प्रकृति के प्रति कृतज्ञता प्रकट की जाती है।
छठ के अवसर पर महिलाएं और पुरुष बिना भेदभाव के घाटों पर एक साथ पूजा करते हैं, जो सामाजिक एकता, पवित्रता और सामूहिकता का संदेश देता है। ग्रामीण से शहरी क्षेत्रों तक यह पर्व स्वच्छता, संयम और सामंजस्य की भावना को जीवित रखता है।
पूजन सामग्री और विधि
छठ पूजा में विशेष रूप से ठेकुआ, गुड़ से बनी खीर, चावल, फल (मुख्यतः केला, नारियल, नींबू, गन्ना), सूप, डलिया, दीपक और पांच प्रकार के फल चढ़ाए जाते हैं।
पूजा के दौरान सूर्य देव और छठी मैया के समक्ष दीप प्रज्वलित कर जल अर्पित किया जाता है, व्रती स्नान करके शुद्ध वस्त्र पहनते हैं और परिवार के साथ सूर्य मंत्रों का जाप करते हैं।
लोकगीतों में झलकती भक्ति और मातृत्व की भावना
छठ के दौरान गाए जाने वाले लोकगीत —
“उठे सुगनिया पाखी, भरले अंजुरी पानी…”
या
“सुपवा उड़े न बइठे घाटे, छठी मईया बोलाइले…”
इन गीतों में मातृत्व, स्नेह और भक्ति का अद्भुत संगम झलकता है।
संक्षेप में — आस्था, अनुशासन और प्रकृति का पर्व
छठ पूजा केवल एक व्रत नहीं, बल्कि जीवन में अनुशासन, आत्मसंयम और प्रकृति के प्रति कृतज्ञता का उत्सव है।
यह पर्व हमें यह सिखाता है कि जब मन, वचन और कर्म की शुद्धता के साथ हम प्रकृति और परमात्मा के प्रति निष्ठा रखते हैं, तो जीवन में प्रकाश अवश्य आता है।
