टूटती मर्यादाएँ : रिश्तों का कत्ल या प्रेम की नई परिभाषा?

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रविन्द्र बंसल प्रधान संपादक /  जन वाणी न्यूज़ 

टूटती मर्यादाएँ : रिश्तों का कत्ल या प्रेम की नई परिभाषा?

रामपुर (उ.प्र.)

हमारे समाज में चाची-भतीजे का रिश्ता हमेशा आदर, ममता और मर्यादा का प्रतीक माना जाता है। लेकिन रामपुर में घटित एक घटना ने इस रिश्ते की परिभाषा को हिला दिया।

एक युवक को अपनी चाची से प्रेम हो गया। प्रेम पहले छुपा रहा, फिर खुलकर सामने आया। रिश्ते शारीरिक संबंधों तक पहुंचे। लेकिन जब युवक ने दूरी बनानी शुरू की, तो चाची ने बलात्कार का मुकदमा दर्ज करा दिया। मामला थाने पहुँचा। पुलिस के दबाव, समाज की चर्चा और रिश्तेदारों के विरोध के बीच, दोनों ने थाने में ही गन्धर्व विवाह कर लिया।

न पंडित, न सात फेरे, न बारात। सिर्फ़ एक कागज़, पुलिस की मौजूदगी और दो दिलों की सहमति।

पीड़ित चाचा का दर्द

यह घटना उस व्यक्ति के लिए सबसे बड़ा सदमा है, जो महिला का पति और युवक का चाचा है। टूटे मन से उसने कहा –

मेरा सबकुछ बर्बाद हो गया। यह मेरा सगा भतीजा है। जब थाने से दबाव पड़ा, तो भतीजे ने शादी कर ली। अब उसका मुझसे कोई रिश्ता नहीं रहा।”

उसके शब्दों में सिर्फ़ आक्रोश नहीं, बल्कि टूटा हुआ घर, बिखरे रिश्ते और खोई हुई इज्ज़त की आवाज़ थी।

तीन मासूम बच्चों का क्या?

इस कहानी के सबसे बड़े शिकार वे तीन मासूम बच्चे हैं जो महिला की पहली शादी से हैं।

क्या उन्हें अब सौतेला बाप कहकर पुकारा जाएगा?

क्या समाज उन्हें ताने देगा कि उनकी मां ने चाचा को छोड़ भतीजे का हाथ थाम लिया?

क्या उनका बचपन रिश्तों की इस उथल-पुथल में दबकर रह जाएगा?

ये सवाल किसी अदालत में नहीं उठेंगे, लेकिन इन बच्चों के मन में उम्रभर गूंजते रहेंगे।

समाज की कठोर नजरें

गांव-कस्बों में यह खबर आग की तरह फैल चुकी है। लोग चौपालों पर चर्चा कर रहे हैं —

“अरे यह तो रिश्तों का कत्ल है!”

“भतीजा भी ऐसा करता है क्या?”

“बच्चों का क्या होगा?”

समाज के लिए यह सिर्फ़ एक खबर है, लेकिन उस परिवार के लिए यह एक ऐसा तूफ़ान है जिसने उनकी पूरी दुनिया हिला दी।

कानून बनाम रिश्तों की मर्यादा

कानून कहता है कि बालिग़ होने पर दो लोग आपसी सहमति से विवाह कर सकते हैं। बलात्कार का केस भी अगर महिला अपनी इच्छा से वापस लेना चाहे, तो ले सकती है।

लेकिन क्या हर कानूनी मान्यता नैतिक भी होती है?

क्या सिर्फ़ सहमति से किए गए फैसले रिश्तों की पवित्रता को बनाए रख सकते हैं?

प्रेरणा और चेतावनी

यह घटना हमें यह सोचने पर मजबूर करती है कि रिश्ते सिर्फ़ खून के नहीं होते, वे विश्वास के होते हैं।

अगर विश्वास टूटता है, तो केवल एक व्यक्ति नहीं, पूरा परिवार बिखर जाता है।

बच्चों का भविष्य दांव पर लग जाता है।

समाज में रिश्तों की मर्यादा पर सवाल उठने लगते हैं।

हमें क्या करना चाहिए

इस तरह की घटनाएँ हमें चेतावनी देती हैं कि हमें अपने रिश्तों, अपने घरों और अपनी संतान के भविष्य के बारे में गंभीरता से सोचना चाहिए।

समाज को यह समझना होगा कि केवल कानून से रिश्ते नहीं बचते, उनके लिए संस्कार चाहिए।

परिवारों को यह सोचना होगा कि भावनाओं और इच्छाओं की कीमत केवल दो लोगों तक सीमित नहीं रहती, यह बच्चों, रिश्तेदारों और समाज तक असर डालती है।

युवाओं को यह समझना होगा कि प्रेम सिर्फ आकर्षण नहीं, बल्कि जिम्मेदारी है।

यह कहानी सिर्फ़ एक प्रेम प्रसंग नहीं है। यह एक आईना है — जो हमें दिखाता है कि रिश्ते कितने नाजुक होते हैं और उन्हें निभाने के लिए कितनी समझ, धैर्य और जिम्मेदारी की जरूरत होती है।

क्या हम ऐसे रिश्तों को “प्रेम की जीत” कहेंगे या “परिवार की हार”?

यह फैसला समाज और आने वाली पीढ़ियों को करना है।

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