मजलूमों के मसीहा बाबासाहेब भीमराव अंबेडकर

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रविन्द्र बंसल प्रधान संपादक / जन वाणी न्यूज़

बाबा साहब भीमराव अंबेडकर पर विशेष लेख

मजलूमों के मसीहा बाबासाहेब भीमराव अंबेडकर

सदियों की बेड़ियों को तोड़ने वाले महानायक की संघर्षगाथा

नई दिल्ली। भारत के सामाजिक इतिहास में यदि किसी एक व्यक्तित्व ने राष्ट्र का चेहरा बदला, वंचितों में आत्मसम्मान जगाया, पिछड़ों-दलितों को शिक्षा का शस्त्र दिया और लोकतंत्र को मजबूत आधार प्रदान किया—तो वह नाम है डॉ. भीमराव रामजी अंबेडकर।
उनकी जीवनगाथा केवल एक मनुष्य की कथा नहीं, बल्कि एक करोड़ों उत्पीड़ितों के संघर्ष और विजय की प्रतीक है। सामाजिक न्याय, मानव मर्यादा और समान अधिकारों के लिए उनका संघर्ष स्वतंत्र भारत के निर्माण का आधार बना।

बाल्यावस्था : अपमान में तपकर निकला महानायक

14 अप्रैल 1891, मध्यप्रदेश के महू में जन्मे भीमराव का बचपन एक ऐसा दर्पण था जिसमें तत्कालीन भारतीय समाज की कठोर जातिगत दीवारें स्पष्ट दिखती थीं।
स्कूल में उन्हें अलग बैठाया जाता, पानी के घड़े को छूने तक की अनुमति नहीं थी।
एक बार जब उन्हें और उनके भाई-बहनों को एक स्थान से दूसरे स्थान जाना पड़ा, तो बैलगाड़ी वाले ने उनकी ‘जाती’ सुनकर बैठाने से मना कर दिया। छोटे से बालक भीमराव ने तब पहली बार महसूस किया… सामाजिक अन्याय कितना गहरा है।

इन अपमानों ने उन्हें तोड़ा नहीं—बल्कि 🔥इन्हीं अनुभवों ने उनमें अंगार की तरह क्रांति का भाव जगाया।

शिक्षा का सफर : भेदभाव से लड़कर दुनिया के शीर्ष पर पहुंचे

अपने महत्त्व, परिश्रम और मेधाशक्ति के बल पर अंबेडकर ने वह कर दिखाया जो उस युग में असंभव माना जाता था—

मुख्य शिक्षा पड़ाव

बॉम्बे विश्वविद्यालय—पहली परीक्षा में ही सर्वश्रेष्ठ विद्यार्थियों में स्थान

अमेरिका सरकार से छात्रवृत्ति

कोलंबिया विश्वविद्यालय से उच्च शिक्षा

लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से डॉक्टरेट

बैरिस्टर की उपाधि

विश्व के सर्वश्रेष्ठ संस्थानों में शिक्षा प्राप्त करने वाले भारत के पहले दलित व्यक्तित्व बनकर उन्होंने दुनिया को स्तब्ध कर दिया।
उन्होंने कहा था—
“ज्ञान प्राप्त करना मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है, और मैं इसे लेकर रहूंगा।”

सामाजिक आंदोलन का सूत्रपात : दासता के विरुद्ध बिगुल

भारत लौटने के बाद बाबा साहेब ने एक-एक कदम पर सामाजिक व्यवस्था को चुनौती दी।

१. मराठवाड़ा और महाराष्ट्र में आंदोलन

उन्होंने अछूतों के लिए

पीने के पानी का अधिकार,

मंदिर प्रवेश,

सार्वजनिक स्थलों पर समानता
के लिए अनेक आंदोलन चलाए।

२. महाड़ सत्याग्रह (1927)

छुआछूत की प्रथा के विरुद्ध यह पहला बड़ा आंदोलन था, जिसमें अंबेडकर ने चवदार तालाब का पानी पीकर यह घोषणा की—
“मानव अधिकार किसी की दया से नहीं, संघर्ष से मिलते हैं।”

३. हरिजन शब्द का विरोध

उन्होंने ‘हरिजन’ शब्द को अपमानजनक बताया और कहा—
“हम इंसान हैं, किसी की कृपा के पात्र नहीं।”

४. नारी सम्मान के लिए संघर्ष

अंबेडकर ने स्त्री को समान अधिकार दिलाने के लिए

हिंदू कोड बिल,

संपत्ति में अधिकार
और

विवाह संबंधी सुधार
जैसे साहसिक कदम उठाए।

 

राजनीति में प्रवेश : हाशिये के लोगों को आवाज

डॉ. अंबेडकर का उद्देश्य सत्ता नहीं—बल्कि प्रतिनिधित्व था।

उन्होंने अलग-अलग दलित-पिछड़े संगठनों का नेतृत्व किया और यह सिद्ध किया कि लोकतंत्र तभी मजबूत होगा जब समाज का अंतिम व्यक्ति भी अस्मिता और अधिकार के साथ जी सके।

संविधान निर्माण : भारत को मिला न्याय का मार्गदर्शक

1947 में स्वतंत्रता मिलते ही संविधान सभा का गठन हुआ।
उस समय सर्वसम्मति से डॉ. अंबेडकर को संविधान मसौदा समिति का अध्यक्ष चुना गया।

संविधान में अंबेडकर का योगदान

वंचितों के लिए आरक्षण व्यवस्था

समानता का अधिकार

स्वतंत्र न्यायपालिका

मौलिक अधिकार

धर्म, जाति, भाषा और लिंग के आधार पर भेदभाव का निषेध

शिक्षा, रोजगार और नागरिक स्वतंत्रता की सुरक्षा

उन्होंने कहा—
“संविधान केवल कानून की किताब नहीं, बल्कि एक जीवित दस्तावेज है, जो समाज को दिशा देता है।”

स्वतंत्र भारत में मंत्री और सुधारक

स्वतंत्र भारत के पहले मंत्रिमंडल में डॉ. अंबेडकर को कानून मंत्री बनाया गया।
उनका कार्यकाल अनेक महत्वपूर्ण सुधारों, विशेषकर हिंदू कोड बिल के लिए याद किया जाता है, जिसने महिलाओं को

संपत्ति,

विवाह,

उत्तराधिकार
में अभूतपूर्व अधिकार दिए।

बौद्ध धर्म स्वीकार : मानवतावाद का मार्ग

1956 में नागपुर में ऐतिहासिक क्षण आया जब बाबासाहेब ने लाखों अनुयायियों के साथ बौद्ध धर्म अपनाया और घोषणा की—
“मैं हिंदू धर्म इसलिए छोड़ रहा हूँ क्योंकि यह समानता का संदेश नहीं देता.”

यह केवल धर्म परिवर्तन नहीं था, बल्कि मानव सम्मान और आत्मसम्मान का महाअभियान था।

 

अंतिम दिनों में भी समाज चिंतन

अंतिम समय में भी उन्होंने कई महत्वपूर्ण पुस्तकें लिखीं

जाति का विनाश

बुद्ध और उनका धम्म

राज्य और अल्पसंख्यक
इन्हें आज भी सामाजिक सुधार का मार्गदर्शक माना जाता है।

✦ निधन : युग का अंत… विचार का आरंभ

6 दिसंबर 1956 को बाबासाहेब का देहावसान हुआ।
राष्ट्र स्तब्ध था, परन्तु उनकी विचारधारा करोड़ों लोगों के हृदय में अमर हो गई।

प्रेरणा : क्यों अमर हैं बाबासाहेब?

क्योंकि उन्होंने सिखाया—

संगठन ही शक्ति है

शिक्षा सबसे बड़ा हथियार है

आत्मसम्मान से बड़ा कोई धर्म नहीं

समानता ही सभ्यता का आधार है

आज भी करोड़ों लोग उन्हें उम्मीद, साहस, और न्याय के रक्षक के रूप में देखते हैं।

महान क्रांतिकारी की अविरल धारा

डॉ. अंबेडकर की यात्रा—
महू की धूल भरी गलियों से लेकर
विशाल संविधान भवन तक—
सिर्फ इतिहास नहीं, एक युगांतरकारी क्रांति है।

उन्होंने भारत को आधुनिक, समान और लोकतांत्रिक राष्ट्र बनाया।
उनकी दिए दिशा आज भी नई पीढ़ियों को संघर्ष, शिक्षा और आत्मविश्वास से भरती है।

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