जन वाणी न्यूज़
नोएडा ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण द्वारा किसानों की समस्याओं का निस्तारण न किए जाने से किसानों में पनप रहा है रोष
प्राधिकरणों के विरुद्ध हरियाणा के अनंगपुर गांव जैसे आंदोलन की सुगबुगाहट शुरू
ऐसे आंदोलन से नोएडा, ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण की छवि खराब होने से इन्वेस्टर्स पर पड सकता है बुरा असर
-कर्मवीर नागर प्रमुख
गौतमबुद्धनगर। अगर भगवान में आस्था रखने वाला कोई आस्तिक व्यक्ति इतनी बार पत्थर की मूर्ति के भगवान से भी मन्नतें मांगता तो शायद वह भी तरस खाकर तथास्तु कह देते लेकिन नोएडा, ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण न जाने रोते, बिलखते, चिल्लाते उन किसानों पर कब तरस खाएंगे जो पिछले 17 साल से अर्जित भूमि के सापेक्ष मिलने वाले आबादी भूखंड आबंटन की बाट जोह रहे हैं। जबकि बाट जोह रहे बहुत से किसान तो इसी इंतजार में इस दुनिया से ही विदा हो चुके हैं। लेकिन ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण का इन किसानों के प्रति दिल नहीं पसीजा।
आरोप है कि प्राधिकरण दुधारू गाय की तरह इन किसानों का दोहन कर रहा है। प्राधिकरण में व्याप्त भ्रष्टाचार का आलम यह है कि किसानों को कोई यह तक बताने के लिए तैयार नहीं कि उनका नाम पात्रता सूची में दर्ज है या नही। मेरी निजी राय उस आम धारणा के विपरीत है जो कहते हैं कि प्राधिकरण में कुछ काम नहीं हो रहा लेकिन असलियत यह है कि रिश्वत के जरिए नामुमकिन काम भी पूरी तरह मुमकिन है। इसीलिए तो पतवाडी और रोजा याकूबपुर जैसे महंगी भूमि के गांवों के किसानों को आबादी भूखंड आबंटित नहीं किये जा रहे।
जबकि इन्हीं गांवों में भ्रष्टाचार के जरिए गैर पुश्तैनी कहे जाने वाले किसानों के भी आबादी भूखन्ड आबंटित किए जाने की पुख्ता सूचनाएं हैं। इतना ही नही बल्कि ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण में प्लेसमेंट सर्विस के जरिए कार्यरत एक कर्मचारी ने तो घोड़ी बछेड़ा गांव में कम रेट होने के कारण अपने परिजनों के पांच आबादी भूखंडों को नियमावली के विरुद्ध पतवाडी गांव की महंगी भूमि क्षेत्र में ही स्थानांतरित करा लिया है। भूमि दरों में आसमान छूते पतवाडी और रोजा याकूबपुर गांव के आबादी भूखंडों के आबंटन में जान पूछ कर देरी किए जाने के पीछे का असली कारण किसानों को औने-पौने दामों में भूखंड बेचने के लिए मजबूर करना है।
इसी के चलते ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण किसानों के आबादी भूखंड आबंटन और बैकलीज जैसी सूचनाओं को गुप्त रखकर भ्रष्टाचार को बढ़ावा दे रहा है। अन्यथा प्राधिकरण कार्यालय का रोजाना चक्कर लगाने वाले किसानों से संबंधित मामलों की अपडेट अखबारों के माध्यम से या प्राधिकरण के बाहर सूचना पट पर लगाई जानी चाहिए। लेकिन प्राधिकरण जनहित में सेवा सुधार और भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने के प्रति ज्यादा गंभीर नजर नहीं आते भले ही प्राधिकरण को बदनामी का कितना भी दंश झेलना पड़े। इसीलिए तो देश की सर्वोच्च न्याय व्यवस्था भी नोएडा, ग्रेटर नोएडा में व्याप्त भ्रष्टाचार पर अनेकों बार तलख टिप्पणी कर चुके हैं फिर भी प्राधिकरण की कार्यशैली पर आज तक कोई फर्क नहीं पड़ा। लेकिन किसानों का उत्पीड़न करने वाले भ्रष्टाचारियों को यह कतई नहीं भूलना चाहिए कि समय बदलने पर बहुत से अधिकारियों को जेल की सलाखों के पीछे जाना पड़ा है।
नोएडा, ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण में व्याप्त भ्रष्टाचार और किसानों के उत्पीड़न के लिए अब तो स्थानीय जनप्रतिनिधियों को आरोपों के कटघरे में खड़ा करना भी इसलिए उचित प्रतीत नहीं होता क्योंकि यह प्राधिकरण तो भ्रष्टाचार के प्रति जीरो टॉलरेंस नीति पर काम करने वाले प्रदेश के मुख्यमंत्री से भी बेखौफ नजर आ रहे हैं। रही सही कसर उस समय पूरी हो गई जब विगत दिनों औद्योगिक विकास मंत्री गोपाल नंदी ने अधिकारियों पर कंपनियों को सब्सिडी देने और तबादला पोस्टिंग जैसे काम न करने की तोहमत तो लगाई, जिनका आम आदमी और किसानों से कोई वास्ता नहीं है, लेकिन दशकों से किसानों की लंबित और अनसुलझी समस्याओं के निस्तारण पर कतई चुप्पी नहीं तोड़ी। ऐसा नहीं है कि आज का किसान इन सब बातों को समझ नहीं रहा है लेकिन गौतम बुद्ध नगर के किसानों की समस्याओं को अनदेखा किया जाने का मूल कारण यहां ग्रुप हाउसिंग सोसाइटीज में प्रवासी मतदाताओं की बढ़ती हुई संख्या है जिन्होंने यहां के किसान की बेकद्री के कगार पर पहुंचा दिया है। लेकिन प्राधिकरण के अधिकारियों को अब किसानों के धैर्य का इम्तिहान लेना बंद करके किसानों के आबादी भूखंड आबंटन और बैकलीज जैसी ज्वलंत समस्याओं का निस्तारण अविलंब कर देना चाहिए अन्यथा नोएडा, ग्रेटर नोएडा क्षेत्र को हरियाणा के अनंगपुर गांव जैसा विरोध झेलना पड़ सकता है जिसकी सुगबुगाहट होना प्रारंभ हो गई है। जिससे देश में ही नहीं पूरी दुनिया में इन प्राधिकरणों की बदनामी और छवि खराब होने से इन्वेस्टर्स मिलने मुश्किल हो जाएंगे।