रविन्द्र बंसल प्रधान संपादक / जन वाणी न्यूज़
पश्चिमी उत्तर प्रदेश में हाई कोर्ट बेंच की माँग फिर तेज—जनता को राहत देने वाला मुद्दा
देश के 53वें चीफ जस्टिस सूर्यकांत की टिप्पणी से उठी उम्मीद
पश्चिमी उत्तर प्रदेश में हाई कोर्ट की खंडपीठ की स्थापना लंबे समय से जनता की प्रमुख मांग रही है। आम नागरिक, किसान, मजदूर, छोटे कारोबारियों से लेकर विभिन्न जिलों की बार एसोसिएशनों तक—सभी बार-बार कहते रहे हैं कि न्याय तक पहुँच उनके लिए आसान और किफायती बने।
अब जब देश के 53वें चीफ जस्टिस सूर्यकांत ने इस मुद्दे को “महत्वपूर्ण” माना है, तो इस विषय को नई दिशा और नई गंभीरता मिलती दिखाई दे रही है।
दूरी और खर्च—सबसे बड़ी जनता की मजबूरी
पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कई जिले हाई कोर्ट की मुख्य सीट इलाहाबाद से सैकड़ों किलोमीटर दूर हैं।
एक साधारण व्यक्ति को अपने मामले की सुनवाई के लिए पूरी दिनभर की यात्रा करनी पड़ती है।
किराया
भोजन
रहने की व्यवस्था
बार-बार तारीख पर जाना
ये सभी मिलकर गरीब और सामान्य परिवार पर भारी बोझ डालते हैं।
यही कारण है कि स्थानीय स्तर पर बेंच की माँग वर्षों से उठती रही है। जनता का सीधा कहना है—न्याय की डगर आसान हो, दूरी कम हो, समय बचे और खर्च भी घटे।
चीफ जस्टिस की बात से बढ़ी उम्मीद
चीफ जस्टिस सूर्यकांत ने न्याय की सुलभता को सर्वोच्च प्राथमिकता बताया है।
उनका कहना है कि आम आदमी तक न्याय पहुँचाना सबसे ज़रूरी है।
स्थानीय स्तर पर अदालतें और सुनवाई की व्यवस्था मजबूत हो तो पेंडेंसी यानी लंबित मामलों का बोझ भी घट सकता है।
उनका यह रुख स्पष्ट करता है कि पश्चिमी यूपी में बेंच को लेकर उठ रही आवाज़ें सिर्फ भावनात्मक नहीं, बल्कि जनता की वास्तविक ज़रूरतों से जुड़ी हैं।
बेंच बनने से जनता को क्या मिलेगा
1. न्याय के रास्ते में आई दूरी घटेगी
इसी क्षेत्र में बेंच बनने से इलाहाबाद की यात्रा की मजबूरी खत्म होगी।
यह सीधे तौर पर किसानों, महिलाओं, छोटे व्यापारियों और आर्थिक रूप से कमजोर परिवारों के लिए राहत का कारण बनेगा।
2. मामलों की सुनवाई तेज हो सकती है
जब मामलों का बोझ अलग-अलग जगह बाँट दिया जाएगा तो तारीखें जल्दी मिलेंगी और फैसले भी तेजी से आ पाएंगे।
3. खर्च में भारी कमी
यात्रा, होटल, खानापीना, कई बार लगने वाली तारीख—इन सब पर होने वाला खर्च कम होगा।
न्याय वास्तव में सस्ता और सुलभ बनेगा।
4. युवाओं और वकीलों को नए अवसर
स्थानीय वकीलों को अधिक काम मिलेगा, नई कानूनी सेवाएँ शुरू होंगी और युवा वर्ग को रोज़गार के अवसर बढ़ेंगे।
प्रक्रिया क्या है—निर्णय कैसे लिया जाता है
हाई कोर्ट की नई बेंच बनाने में राज्य सरकार, हाई कोर्ट और केंद्र सरकार तीनों की संयुक्त भूमिका होती है।
राज्य सरकार को विस्तृत प्रस्ताव भेजना होता है
हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश की सहमति आवश्यक होती है
केंद्र सरकार और राष्ट्रपति अंतिम आदेश जारी करते हैं
यानी यह मुद्दा पूरी प्रक्रिया से गुजरकर ही आगे बढ़ता है। इसीलिए जनता चाहती है कि सभी पक्ष मिलकर निर्णय लें ताकि काम आगे बढ़ सके।
कुछ चुनौतियाँ भी हैं—पर समाधान संभव है
इन्फ्रास्ट्रक्चर और खर्च
नयी बेंच के लिए भवन, सुविधा और स्टाफ की जरूरत होगी। यह सरकारी बजट पर अतिरिक्त बोझ डाल सकता है, पर इसका लाभ सीधा जनता को मिलेगा।
जजों की नियुक्ति
न्याय तेज़ हो, इसके लिए पर्याप्त संख्या में जजों की नियुक्ति जरूरी होगी।
अगर संख्या कम रखी गई तो लाभ पूरा नहीं मिल पाएगा।
समन्वय की आवश्यकता
केंद्र और राज्य के बीच तालमेल जरूरी है।
जब दोनों पक्ष जनता के हित में एकमत हों, तभी यह विषय आगे बढ़ता है।
जनता की सबसे बड़ी अपेक्षा—न्याय उनके पास आए
यह पूरा मामला किसी क्षेत्रीय राजनीति या विवाद का मुद्दा नहीं है।
यह जनता के हित का शुद्ध और गम्भीर प्रश्न है—
न्याय दूरी के कारण कठिन न बने, बल्कि लोगों के पास पहुंचे।
अकेले पश्चिमी यूपी ही नहीं, पूरे राज्य को इसका लाभ मिलेगा क्योंकि उच्च न्यायालय का दबाव कम होगा और राज्य में न्याय की गति बढ़ेगी।
निष्कर्ष—साफ है कि यह जनता की जरूरत का सवाल
पश्चिमी उत्तर प्रदेश में हाई कोर्ट बेंच की स्थापना सिर्फ एक प्रशासनिक कदम नहीं है।
यह लाखों परिवारों के समय, धन, सुविधा और न्याय की सुगमता से जुड़ा हुआ मुद्दा है।
चीफ जस्टिस सूर्यकांत की टिप्पणी ने इस विषय को नई गंभीरता दी है।
यदि सरकार, न्यायपालिका और सभी पक्ष जनता के हितों को सर्वोपरि रखते हुए इस पर निर्णय लें, तो यह कदम पूरे क्षेत्र के लिए बड़े बदलाव की शुरुआत बन सकता है।
