जन वाणी न्यूज़
धर्मेंद्र: पंचतत्व में विलीन हुआ सदियों का सितारा
भारतीय सिनेमा का ‘ही-मैन’, जिसने छह दशक तक पर्दे पर जीवंत रखी इंसानियत, प्रेम और बहादुरी की रोशनी
लेखक: रविन्द्र बंसल
मुंबई, 24 नवंबर। भारतीय सिनेमा के स्मृति-कोष में एक ऐसा अध्याय बंद हो गया है, जिसकी गूँज सदियों तक सुनाई देती रहेगी। हिंदी फिल्मों के महान नायक, सरलता और सौम्यता के पर्याय धर्मेंद्र पंचतत्व में विलीन हो चुके हैं। 89 वर्ष की आयु में उनकी जीवन-यात्रा समाप्त हुई, लेकिन वे अपने पीछे इतनी विशालताएँ छोड़ गए हैं कि हर पीढ़ी उनके संसार से कुछ न कुछ सीख पाती रहेगी।
उनके निधन के साथ सिर्फ एक अभिनेता नहीं गया—बल्कि एक पूरा दौर, एक पूरा एहसास, एक पूरा संसार विदा हो गया।
किसान परिवार का बेटा—विश्व सिनेमा का चमकता सितारा
धर्मेंद्र का जन्म 8 दिसंबर 1935 को पंजाब के नसराली गांव में हुआ। एक साधारण किसान परिवार में पले-बढ़े धर्मेंद्र के सपनों की उड़ान इतनी ऊँची थी कि फिल्म उद्योग को भी नहीं पता था कि आने वाले वर्षों में एक ऐसा नायक आएगा जो रोमांस, एक्शन और हास्य—तीनों का परिपूर्ण मेल होगा।
उनकी आँखों में मासूमियत, व्यक्तित्व में शालीनता और देह में अपार वीरता—ये तीनों गुण मिलकर उन्हें भारतीय सिनेमा का “ही-मैन” बनाते हैं।
फिल्मी सफर: छह दशक, 300 से अधिक फिल्में और अनगिनत यादें
साल 1960 में बतौर अभिनेता पदार्पण करने वाले धर्मेंद्र ने धीरे-धीरे बॉलीवुड की धड़कनों में अपनी जगह बनाई। शोले में वीरू, अनुपमा में सादगी भरा प्रेमी, सत्यम शिवम् सुंदरम् में भावनात्मक अभिनेता, धर्म वीर और यादों की बारात जैसे सामाजिक नायक—हर किरदार में उनका रँग अलग था, लेकिन असर एक जैसा—गहरा, स्थायी और अविस्मरणीय।
उनकी फिल्मों ने एक पूरा कालखंड गढ़ा, जिसमें दर्शक सिर्फ मनोरंजन नहीं, बल्कि अपने जीवन के हिस्से ढूँढते रहे।
एक ऐसा कलाकार जो स्टार होने से पहले इंसान था
धर्मेंद्र की सबसे बड़ी खूबसूरती यह थी कि वे स्टारडम के शिखर पर रहते हुए भी जमीन से जुड़े रहे। सादगी, प्रेम, सम्मान और विनम्रता—ये शब्द अक्सर उनके नाम के साथ चलते थे।
शूटिंग के मंच पर हो या किसी सामाजिक कार्यक्रम में, धर्मेंद्र कभी भी “सुपरस्टार” होने की दूरी नहीं बनाते थे। यही उनकी सबसे बड़ी पूँजी थी—दर्शकों से बना वह रिश्ता, जो आज भी धड़कता है।
ही-मैन का राजनीतिक सफर
फिल्मों के साथ-साथ उन्होंने राजनीति में भी अपनी भूमिका निभाई। वे 2004 से 2009 तक लोकसभा सांसद रहे। संसद में भी उनकी उपस्थिति एक कलाकार की संवेदनशीलता और एक नागरिक की जिम्मेदारी का प्रतीक बनी रही।
अंतिम यात्रा: सितारों की भीड़ में कलाकार की विदाई
धर्मेंद्र का अंतिम संस्कार मुंबई के विले पार्ले स्थित पवन हंस श्मशान घाट में हुआ। पूरा देओल परिवार, रिश्तेदार, मित्र और अनगिनत चाहने वाले नम आँखों से उनकी अंतिम यात्रा में शामिल हुए।
बॉलीवुड की लंबी श्रेणी—अमिताभ बच्चन, अक्षय कुमार, शत्रुघ्न सिन्हा, अभिषेक बच्चन, जैकी श्रॉफ, करण जौहर और अनेक सितारे—अंतिम दर्शन के लिए पहुँचे।
हर चेहरा मुरझाया हुआ था, हर आँख नम थी—मानो पूरा उद्योग कह रहा हो कि “ऐसे इंसान अब नहीं आते…”
देश-दुनिया से उमड़ा शोक
प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने उन्हें “एक युग का अंत” बताया।
अक्षय कुमार बोले—“हर लड़के का सपना था कि वह कभी न कभी धर्मेंद्र जैसा बने।”
करण जौहर ने लिखा—“इतनी गर्मजोशी का मनुष्य कम मिलता है।”
दक्षिण भारतीय फिल्म जगत से Jr NTR और अन्य सितारों ने उन्हें “युग-निर्माता” बताया।
विदेशों से भी श्रद्धांजलि संदेश आए—यह प्रमाण था कि धर्मेंद्र का प्रभाव सीमाओं से परे था।
क्यों अमर रहेंगे धर्मेंद्र?
क्योंकि धर्मेंद्र केवल एक अभिनेता नहीं थे—वे भावनाओं का पुल थे, जो पीढ़ियों को जोड़ता था।
क्योंकि उनका संसार पर्दे से बड़ा था—विनम्रता, प्रेम और मानवीय गर्माहट से भरा हुआ।
क्योंकि उनकी आँखों में वही चमक थी, जो इंसानियत की पहचान होती है।
और सबसे बड़ा कारण—
धर्मेंद्र ने सिर्फ फिल्में नहीं दीं, उन्होंने जीवन की खुशियाँ और यादें दीं।
अंतिम शब्द: एक युग का अंत, लेकिन अमर विरासत
धर्मेंद्र पंचतत्व में विलीन हो चुके हैं, लेकिन उनका प्रभाव हवा की तरह है—जिसे देखा नहीं जा सकता, पर महसूस किया जा सकता है।
जब-जब शोले में वीरू की हँसी सुनाई देगी, जब-जब उनकी आँखों की पारदर्शी मासूमियत पर्दे पर चमकेगी, जब-जब उनकी शान से भरी आवाज़ गूँजेगी—
सिनेमा अपनी साँसों में धर्मेंद्र को जीवित रखेगा।
वे चले गए हैं…
लेकिन उनका जादू, उनका प्रेम और उनकी सरलता—
हमेशा-हमेशा के लिए हमारे साथ है।
