हरिद्वार जिला महिला अस्पताल: गर्भवती महिला को भर्ती से इनकार, फर्श पर बच्चे को जन्म देने को मजबूर

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रविन्द्र बंसल प्रधान संपादक / जन वाणी न्यूज़

हरिद्वार जिला महिला अस्पताल: गर्भवती महिला को भर्ती से इनकार, फर्श पर बच्चे को जन्म देने को मजबूर

अस्पताल की लापरवाही उजागर, परिजनों और स्वास्थ्यकर्मियों की गवाही से सामने आया अमानवीय व्यवहार

हरिद्वार। उत्तराखंड के हरिद्वार जिला महिला अस्पताल में एक गर्भवती महिला को भर्ती करने से इनकार किए जाने का शर्मनाक मामला सामने आया है। अस्पताल के वार्ड में भर्ती न किए जाने के कारण महिला को फर्श पर ही बच्चे को जन्म देना पड़ा। इस घटना ने स्वास्थ्य व्यवस्था में गंभीर लापरवाही और मानवीय दृष्टिकोण की कमी को उजागर किया है।

घटना का पूरा विवरण

सोमवार रात करीब 9:30 बजे, ब्रह्मपुरी निवासी पुतुल नामक महिला प्रसव पीड़ा के साथ जिला महिला अस्पताल पहुंची। परिजनों ने बताया कि ड्यूटी पर तैनात महिला डॉक्टर सलोनी ने उसे यह कहते हुए भर्ती करने से मना कर दिया कि “यहां डिलीवरी नहीं होगी।”

इसके बाद महिला को वार्ड से बाहर कर दिया गया। मदद की गुहार लगाने वाले परिजनों और साथ मौजूद आशा वर्कर की अपीलों के बावजूद अस्पताल स्टाफ ने कोई सहायता नहीं दी।

लगभग 1:30 बजे रात को महिला ने अस्पताल के फर्श पर ही बच्चे को जन्म दिया। इस दौरान न तो कोई डॉक्टर मौजूद था और न ही नर्सों ने कोई सहायता की। सोशल मीडिया पर वायरल हुए वीडियो में यह दृश्य दिखाई देता है कि प्रसव के दौरान महिला कितनी कठिन परिस्थिति में थी।

परिजनों का दर्द और मानवीय दृष्टिकोण

पुतुल की बहन सोनी ने बताया, “हमने मदद की गुहार लगाई, पर कोई सुनने वाला नहीं था। अगर बच्चे को कुछ हो जाता, तो जिम्मेदारी कौन लेता?”

आशा वर्कर ने भी कहा कि अस्पताल स्टाफ का रवैया पूरी तरह अमानवीय था। घटना ने यह स्पष्ट कर दिया कि अस्पताल में मरीजों के साथ सहानुभूतिपूर्ण व्यवहार और सुरक्षा के लिए आवश्यक कदम नहीं उठाए गए।

मानवीय दृष्टिकोण से देखा जाए तो यह घटना केवल लापरवाही का मामला नहीं है, बल्कि मरीजों के सम्मान और सुरक्षा के प्रति सिस्टम की गंभीर चूक को उजागर करती है।

प्रशासन और अस्पताल की प्रतिक्रिया

मुख्य चिकित्सा अधिकारी (CMO) डॉ. आर.के. सिंह ने मामले की गंभीरता को देखते हुए तत्काल जांच का आदेश दिया।

जांच में पाया गया कि डॉ. सलोनी पंत की जिम्मेदारी में गंभीर चूक हुई। इसके बाद उनकी सेवाएं समाप्त कर दी गईं। दो नर्सों—ज्ञानेंद्री और वंशिका मित्तल—के खिलाफ भी कार्रवाई की गई और उनकी सर्विस बुक में प्रतिकूल प्रविष्टि की गई।

अस्पताल प्रबंधन को भी सख्त चेतावनी दी गई कि भविष्य में मरीजों के साथ सम्मानजनक व्यवहार सुनिश्चित किया जाए।

विशेषज्ञों की राय

स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि यह घटना न केवल अस्पताल प्रशासन की लापरवाही को उजागर करती है, बल्कि पूरे स्वास्थ्य तंत्र में प्रशिक्षित कर्मियों की कमी और मरीजों की सुरक्षा के प्रति जागरूकता की कमी को भी दर्शाती है।

मानवाधिकार कार्यकर्ता भी कह रहे हैं कि अस्पतालों में मरीज केंद्रित और सम्मानजनक सेवाओं को अनिवार्य रूप से लागू करना होगा।

सामाजिक और मानवीय दृष्टिकोण

यह घटना समाज के लिए चेतावनी है कि स्वास्थ्य सेवाओं में मानवीय दृष्टिकोण का पालन न होने पर गंभीर परिणाम हो सकते हैं। प्रत्येक महिला और गर्भवती को सुरक्षित और सम्मानजनक स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध कराना हर अस्पताल का कर्तव्य है।

परिजन, स्वास्थ्यकर्मी और प्रशासन सभी को मिलकर यह सुनिश्चित करना होगा कि भविष्य में ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो।

हरिद्वार जिला महिला अस्पताल में हुई यह घटना स्वास्थ्य व्यवस्था में सुधार की आवश्यकता को रेखांकित करती है। मरीजों के साथ सहानुभूति, तत्परता और सम्मानजनक व्यवहार हर अस्पताल की प्राथमिकता होनी चाहिए।

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