रविन्द्र बंसल प्रधान / संपादक जन वाणी न्यूज़
नेपाल में राजनीतिक भूचाल: ओली का इस्तीफा, अंतरिम सरकार की कवायद तेज — सुशीला कार्की का नाम सबसे आगे
जन आंदोलन की मांगों के बीच नेपाल नई राजनीतिक दिशा की तलाश में; सेना तैनात, संसद भंग पर मतभेद, अंतरिम प्रधानमंत्री के चयन को लेकर हलचल तेज।
काठमांडू, 12 सितंबर नेपाल एक बार फिर राजनीतिक संक्रमण के दौर से गुजर रहा है। सोशल मीडिया पर लगाए गए सरकारी प्रतिबंध और भ्रष्टाचार विरोधी नारों ने देशभर में “Gen Z आंदोलन” को हवा दी। बढ़ते विरोध प्रदर्शनों, हिंसा और अंतरराष्ट्रीय दबाव के बीच प्रधानमंत्री के.पी. शर्मा ओली को आखिरकार पद छोड़ना पड़ा। अब देश में नई अंतरिम सरकार के गठन की प्रक्रिया तेजी से आगे बढ़ रही है और पूर्व चीफ़ जस्टिस सुशीला कार्की का नाम अंतरिम प्रधानमंत्री के लिए सबसे चर्चित है।
घटनाक्रम — समयरेखा
सोशल मीडिया प्रतिबंध और विरोध की चिंगारी: सरकार ने सुरक्षा कारणों का हवाला देकर कुछ सोशल मीडिया प्लेटफार्मों पर रोक लगाई। यह निर्णय युवा वर्ग को नागवार गुजरा और राजधानी काठमांडू से लेकर पोखरा, बिराटनगर तक सड़कें प्रदर्शनकारियों से भर गईं।
हिंसा और जनहानि: पुलिस और प्रदर्शनकारियों में टकराव के चलते कम से कम 30 लोगों की मौत हुई और सैकड़ों घायल हुए। सरकारी इमारतों पर पथराव और आगजनी की घटनाएं भी हुईं।
ओली का इस्तीफा: विपक्ष और प्रदर्शनकारियों के दबाव में प्रधानमंत्री ओली ने 9 सितंबर को इस्तीफा दे दिया। यह नेपाल के लोकतांत्रिक इतिहास में एक बड़ा राजनीतिक मोड़ माना जा रहा है।
सेना की तैनाती: हालात काबू में रखने के लिए राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद की बैठक के बाद सीमित तौर पर सेना को सड़कों पर उतारा गया। संसद भवन, राष्ट्रपति भवन और संवेदनशील ठिकानों पर सुरक्षा कड़ी कर दी गई।
प्रतिबंध वापस: विरोध थमाने के लिए सरकार ने सोशल मीडिया बैन वापस ले लिया, जिससे कुछ हद तक हालात सामान्य हुए।
अंतरिम सरकार और संभावित चेहरे
सुशीला कार्की: नेपाल की पहली महिला मुख्य न्यायाधीश रह चुकीं कार्की को अंतरिम प्रधानमंत्री बनाने की तैयारी है। उनकी छवि ईमानदार और सख्त प्रशासनिक निर्णय लेने वाली के रूप में रही है।
कुलमान घिसिंग: नेपाल इलेक्ट्रिसिटी अथॉरिटी के पूर्व प्रमुख और ऊर्जा संकट खत्म करने के लिए चर्चित प्रशासक कुलमान घिसिंग का नाम भी चर्चाओं में है।
बालेन्द्र शाह (बालेन): काठमांडू के मेयर, युवा चेहरा, सोशल मीडिया पर खासे लोकप्रिय। कुछ समूह उन्हें भी अंतरिम सरकार में महत्वपूर्ण भूमिका देने की मांग कर रहे हैं।
संसद भंग पर मतभेद
अंतरिम सरकार बनाने के साथ-साथ यह भी चर्चा में है कि क्या मौजूदा संसद को भंग कर जल्द चुनाव कराए जाएं। सत्तारूढ़ दल UML और विपक्षी नेपाली कांग्रेस में इस मुद्दे पर मतभेद हैं। माओवादी दल भी इस पर दो-फाड़ हैं। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यदि संसद भंग होती है तो अगले छह महीनों में आम चुनाव कराए जा सकते हैं।
सेना और सुरक्षा बलों की भूमिका
सेना प्रमुख जनरल अशोक राज सिग्देल ने अपील की है कि आंदोलनकारी शांतिपूर्ण ढंग से अपनी मांगें रखें। सेना ने फिलहाल “कंट्रोल्ड डिप्लॉयमेंट” किया है ताकि संवेदनशील स्थानों पर सुरक्षा बनी रहे, लेकिन आपातकाल लगाने की संभावना से इंकार किया है।
जनता और आंदोलन की मांगें
भ्रष्टाचार पर सख्त कार्रवाई
युवाओं को अधिक राजनीतिक भागीदारी का मौका
सोशल मीडिया पर सेंसरशिप का पूर्ण अंत
पारदर्शी चुनाव और नागरिक-नेतृत्व वाली सरकार
यह आंदोलन खास तौर पर शहरी युवाओं का है, जिन्होंने सोशल मीडिया के जरिये इसे संगठित किया।
विश्लेषण: आगे का रास्ता
नेपाल का यह राजनीतिक संकट बताता है कि युवा पीढ़ी अब पारंपरिक राजनीतिक दलों से मोहभंग कर रही है। सुशीला कार्की जैसी तटस्थ और न्यायपालिका से जुड़ी शख्सियत का चयन यह संकेत हो सकता है कि देश में “ट्रांजिशनल जस्टिस” और भ्रष्टाचार विरोधी एजेंडे को प्राथमिकता दी जाएगी।
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत, चीन और अमेरिका इस घटनाक्रम पर नज़र बनाए हुए हैं क्योंकि नेपाल की स्थिरता पूरे दक्षिण एशिया के भू-राजनीतिक समीकरण में अहम है।
निष्कर्ष
नेपाल फिलहाल एक संवेदनशील मोड़ पर है। एक ओर जनता का गुस्सा और बदलाव की मांग है, तो दूसरी ओर संवैधानिक व्यवस्था को बनाए रखने की चुनौती। अंतरिम सरकार के गठन और चुनावी रोडमैप से आने वाले महीनों में यह तय होगा कि नेपाल लोकतंत्र को और मजबूत करता है या फिर एक और राजनीतिक अस्थिरता के दौर में प्रवेश करता है।
