पुतिन का संदेश: “भारत और चीन को धमकाना बंद करे अमेरिका”

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विशेष संवाददाता / जनवाणी न्यूज़

पुतिन का संदेश: “भारत और चीन को धमकाना बंद करे अमेरिका”

रूस के राष्ट्रपति ने अमेरिका को चेताया—भारत और चीन जैसी बड़ी शक्तियों को दबाव या धमकी से नहीं झुकाया जा सकता। विशेषज्ञों का मानना है कि यह बयान भारत के लिए अवसर भी है और चुनौती भी।

 

रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने अमेरिका की नीति पर तीखा हमला करते हुए कहा कि अब औपनिवेशिक युग समाप्त हो चुका है। उन्होंने ज़ोर देकर कहा:

भारत और चीन जैसी शक्तिशाली अर्थव्यवस्थाओं से दबाव की भाषा में बात नहीं की जा सकती।

यह बयान ऐसे समय आया है जब अमेरिका की टैरिफ नीति ने भारत के साथ उसके रिश्तों को तनावपूर्ण बना दिया है।

 

मुख्य खबिंदु

पुतिन ने साफ़ कहा—अमेरिका को भारत और चीन से सम्मानजनक संवाद करना होगा।

भारत को इस बयान से अंतरराष्ट्रीय मंच पर नैतिक और राजनीतिक समर्थन मिला।

विशेषज्ञ मानते हैं—भारत के लिए यह अवसर भी है, लेकिन आर्थिक जोखिम भी मौजूद हैं।

रूस-भारत रक्षा और ऊर्जा सहयोग और गहराने की संभावना है।

बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था

पुतिन का बयान इस बात का संकेत है कि अब दुनिया एकध्रुवीय नहीं रही। भारत जैसे देश अब अपनी विदेश नीति में अधिक स्वतंत्रता पा रहे हैं और अमेरिका पर पूरी तरह निर्भर नहीं हैं।

रक्षा और सुरक्षा आयाम

भारत और रूस के बीच रक्षा सहयोग लंबे समय से मज़बूत रहा है। यह बयान संकेत देता है कि ऊर्जा सुरक्षा और रक्षा उपकरणों में नए अवसर खुल सकते हैं। हालांकि रूस की आर्थिक चुनौतियाँ भी वास्तविकता हैं।

व्यापार और आर्थिक असर

अमेरिका की टैरिफ नीति से भारत के निर्यात को झटका लगा है। रूस और चीन सहयोग के नए रास्ते दे सकते हैं, लेकिन अमेरिकी बाज़ार से दूरी भारतीय उद्योगों के लिए कठिनाई भी पैदा कर सकती है।

 

संभावित लाभ

भारत की अंतरराष्ट्रीय साख और मज़बूत होगी

रूस से ऊर्जा और रक्षा सहयोग बढ़ेगा

भारत को रणनीतिक संतुलन साधने के और विकल्प मिलेंगे

संभावित नुकसान

अमेरिका से दूरी व्यापार और निवेश पर असर डाल सकती है

सुरक्षा साझेदारी (जैसे क्वाड) प्रभावित हो सकती है

चीन के साथ सीमा विवाद अब भी बड़ा अवरोध है

 

निष्कर्ष

पुतिन का बयान भारत को राजनीतिक बल देता है और वैश्विक स्तर पर उसकी स्थिति को मजबूत करता है। लेकिन इसके साथ यह भी सच है कि आर्थिक और रणनीतिक चुनौतियाँ बराबर मौजूद हैं। भारत को संतुलन साधते हुए ऐसे रास्ते तलाशने होंगे जिनसे अमेरिका, रूस और चीन—तीनों के साथ अपने हित सुरक्षित रख सके।

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