रविन्द्र बंसल प्रधान संपादक / जन वाणी न्यूज़
लोनी क्षेत्र में आउटलाइन कोर्ट की मांग तेज़
न्यायिक सुविधाओं के अभाव में क्षेत्रवासियों को 30 किलोमीटर दूर गाज़ियाबाद जाना पड़ता है
गाज़ियाबाद। जनपद के लोनी तहसील क्षेत्र में न्यायिक सुविधाओं की भारी कमी के चलते स्थानीय लोगों को गंभीर परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। तहसील क्षेत्र के 5 थानों व 49 ग्रामों के सभी फौजदारी व दीवानी मुकदमों की सुनवाई वर्तमान समय में गाज़ियाबाद ज़िला अदालत में होती है। इस कारण से ग्रामीणों और स्थानीय नागरिकों को 30 किलोमीटर की दूरी तय कर गाज़ियाबाद अदालत जाना पड़ता है, जिससे समय, धन और श्रम तीनों की हानि होती है।
इसी समस्या को देखते हुए लोनी क्षेत्र के प्रमुख अधिवक्ताओं –
अरुण कुमार एडवोकेट
सुमित बैसौया (निठौरा) एडवोकेट
एडवोकेट कपिल कुमार (निठौरा)
एडवोकेट शशांक त्यागी
ने सामूहिक रूप से मुख्य न्यायाधीश, उच्चतम न्यायालय नई दिल्ली, मुख्यमंत्री, उत्तर प्रदेश शासन और मुख्य न्यायाधीश, उच्च न्यायालय इलाहाबाद को डाक द्वारा पत्र भेजकर लोनी क्षेत्र में आउटलाइन कोर्ट स्थापित करने की मांग की है।
इस आंदोलन के संयोजक विनोद कुमार सीनियर एडवोकेट (तहसील लोनी, जिला गाज़ियाबाद) ने बताया कि न्यायिक कार्यों के लिए गाज़ियाबाद तक रोजाना हजारों लोगों को आना-जाना पड़ता है। विशेषकर ग्रामीण और आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लोगों के लिए यह यात्रा आर्थिक बोझ और अनावश्यक देरी का कारण बनती है।
क्षेत्रवासियों की समस्याएं
1. लंबी दूरी: न्याय पाने के लिए लोगों को 30 किलोमीटर दूर गाज़ियाबाद जाना पड़ता है।
2. आर्थिक हानि: यातायात खर्च और समय की बर्बादी से गरीब परिवारों पर अतिरिक्त बोझ पड़ता है।
3. समय की देरी: मामलों की सुनवाई में देरी होती है, जिससे न्यायिक प्रक्रिया लंबी खिंचती है।
4. महिलाओं व बुजुर्गों की परेशानी: लंबी दूरी तय करना उनके लिए और भी कठिन है।
स्थानीय अधिवक्ताओं की राय
अधिवक्ताओं का कहना है कि लोनी जैसे बड़े और घनी आबादी वाले क्षेत्र में न्यायालय न होना स्थानीय लोगों के साथ अन्याय है। यदि यहां आउटलाइन कोर्ट स्थापित कर दिया जाता है, तो न केवल मुकदमों की सुनवाई समय पर हो सकेगी बल्कि लोगों को न्याय तक आसान पहुंच भी मिल सकेगी।
कब मिलेगी लोगों को राहत
लोनी क्षेत्र में आउटलाइन कोर्ट की स्थापना से न्यायिक पहुंच आसान होगी, क्षेत्रवासियों को गाज़ियाबाद जाने की मजबूरी से राहत मिलेगी और न्याय प्रणाली की पारदर्शिता व प्रभावशीलता भी बढ़ेगी। अब देखना यह है कि शासन और न्यायपालिका इस मांग को कब तक संज्ञान में लेकर ठोस कदम उठाती हैं।
