कोर्ट का अहम फैसला: शादी का वादा कर बनाए गए शारीरिक संबंध दुष्कर्म नहीं

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रविन्द्र बंसल प्रधान संपादक / जन वाणी न्यूज़           

कोर्ट का अहम फैसला: शादी का वादा कर बनाए गए शारीरिक संबंध दुष्कर्म नहीं

सूरत, गुजरात।
सूरत सत्र न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण निर्णय सुनाते हुए कहा कि यदि किसी युवती की सहमति से शारीरिक संबंध बनाए गए हैं, तो मात्र शादी का वादा टूट जाने से उसे दुष्कर्म नहीं माना जा सकता। इस निर्णय के साथ ही तीन साल पुराने बहुचर्चित मामले में आरोपी प्रज्वल को बरी कर दिया गया।

मामला क्या था?

डींडोली इलाके की रहने वाली एक बीबीए की छात्रा ने प्रज्वल नामक युवक पर आरोप लगाया था। प्रज्वल कतारगाम में एमटेक का छात्र था। युवती का कहना था कि इंस्टाग्राम पर दोस्ती के बाद उनके बीच प्रेम संबंध बने और युवक ने शादी का वादा करते हुए कई बार शारीरिक संबंध बनाए।
युवती ने यह भी दावा किया कि इस दौरान वह गर्भवती हुई, लेकिन बाद में युवक ने शादी करने से साफ इनकार कर दिया।

बचाव पक्ष की दलील

प्रज्वल के अधिवक्ता अश्विन जे. जोगड़िया ने अदालत में तर्क दिया कि—

युवती शिक्षित और परिपक्व थी।

संबंध पूरी तरह सहमति से बने थे।

सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के पुराने फैसलों में यह स्पष्ट किया गया है कि “शादी का झांसा” और “जबरन दुष्कर्म” में कानूनी फर्क होता है।

 

मेडिकल और डीएनए रिपोर्ट

युवती ने गर्भवती होने और गर्भपात होने का दावा किया था। लेकिन सुनवाई के दौरान मेडिकल साक्ष्य इस दावे की पुष्टि नहीं कर पाए।
डीएनए परीक्षण में भी यह साबित नहीं हो सका कि गर्भपात का भ्रूण आरोपी प्रज्वल से संबंधित था।

कोर्ट की टिप्पणी

अदालत ने अपने निर्णय में कहा कि—

युवती कई बार होटल और रेस्टोरेंट में स्वयं पहचान पत्र देकर ठहरी, इससे स्पष्ट है कि कोई दबाव या मजबूरी नहीं थी।

यह मामला “सहमति से बने संबंध” का है।

युवक और युवती की जाति अलग थी, और इसी कारण युवक का परिवार शादी को लेकर तैयार नहीं हुआ।

न्यायालय ने माना कि “शादी का वादा कर संबंध बनाने” को स्वतः दुष्कर्म नहीं माना जा सकता, जब तक कि इसमें धोखा या बलपूर्वक का तत्व साबित न हो।

फैसले का महत्व

यह फैसला उन सभी मामलों के लिए मिसाल है, जिनमें प्रेम संबंध टूटने के बाद अक्सर युवक पर दुष्कर्म का आरोप लगाया जाता है। अदालत ने यह दोहराया कि सहमति और दबाव के बीच फर्क समझना जरूरी है।

सूरत सत्र न्यायालय का यह निर्णय न केवल आरोपी के लिए राहतभरा है, बल्कि समाज और कानून के लिए भी एक स्पष्ट संदेश है कि सहमति से बने रिश्तों को कानूनी रूप से दुष्कर्म की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता। यह फैसला भविष्य के कई मामलों में मार्गदर्शक साबित हो सकता है।

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