छोटे-छोटे जोन में बंटे सफाई टेंडर को आखिर क्लब करके 241 करोड़ मूल्य का बडा टेंडर करने की मंशा के पीछे ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण का कोई बड़ा खेल तो नहीं ?

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                                       जन वाणी न्यूज़                            

छोटे-छोटे जोन में बंटे सफाई टेंडर को आखिर क्लब करके 241 करोड़ मूल्य का बडा टेंडर करने की मंशा के पीछे ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण का कोई बड़ा खेल तो नहीं ? 
 क्या खराब गुणवत्ता के विरुद्ध प्रभावशाली ठेकेदार पर प्राधिकरण के अधिकारी लगा पाएंगे पेनल्टी ?
 क्या गुण दोष परख कर टेंडर को किया गया है प्लान या फिर किसी विशेष के लिए  की गई है व्यवस्था?
 अगर महा टेंडर आम लोगों के लिए अधिक सुविधाजनक है तो आम जनता को बताएं फायदे
 ऐसा तो नहीं कि यह महाटेंडर कहीं बड़े भ्रष्टाचार के लिए बना दे बड़ा रास्ता 
 -कर्मवीर नागर प्रमुख
गौतम बुधनगर। जिस नोएडा और ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण की कभी बहुत अच्छी साख हुआ करती थी। लेकिन कुछ दिनों के अंतर्गत प्राधिकरणों में भ्रष्टाचार और घोटालों के हुए खुलासों की वजह से साख को बड़ा बट्टा लगा है। इन दोनों प्राधिकरणों में आए दिन घोटालों का उजागर होना अब कोई नई बात नहीं रह गई है। लेकिन फिर भी कोई खास सुधार होता नजर नहीं आ रहा है।                                                                                                 जहां उत्तर प्रदेश सरकार रोजाना अवैध निर्माण के खिलाफ बयान जारी करती रहती है वहीं ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण क्षेत्र में समतल और सहारा सिटी में हो रहे अवैध निर्माण के खिलाफ दो विधायकों की शिकायत और माननीय नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के दिशा निर्देशों के बावजूद भी अवैध निर्माण अनवरत जारी है। जो भ्रष्टाचार का जीवन्त उदाहरण है और जीरो टॉलरेंस नीति पर काम करने वाले  मुख्यमंत्री के आदेशों का खुला उल्लंघन है।  इन दोनों प्राधिकरणों द्वारा कराए जा रहे विकास कार्यों की जो गुणवत्ता पहले हुआ करती थी अब गुणवत्ता स्तर भी लगातार गिर रहा है। हालांकि गुणवत्ता का स्तर गिरने के कई कारण हैं लेकिन ठेकेदारों द्वारा अनवर्केबल दरों पर टेंडर लेना भी एक बड़ा कारण है। जिस पर प्राधिकरण तकनीकी रूप से रोक लगाने में कामयाब नहीं हो पा रहा है।                                                     ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण में टेंडर प्रक्रिया में गड़बड़ घोटाला होना कोई नई बात नहीं है यहां तो ऐसे भी खेल होते रहे हैं जिनमें किसी निविदा के लिए लोएस्ट-1 बोली लगाने वाली फर्म को लोएस्ट-2 दर्शाकर टेंडर प्रक्रिया से बाहर कर दिया जाता है। कई बार सरकारी महकमों के टेंडर्स को मैनेज करने के लिए प्रभावशाली ठेकेदार अधिकारियों से मिलकर टेंडर शर्तों  में मन मुताबिक क्लोज सम्मिलित करा देते हैं। कई बार बड़ी ठेका फर्में छोटे ठेकेदारों को बाहर करने के लिए छोटे-छोटे टेंडर्स को क्लब करके बडा टेंडर प्लान भी करा लेते हैं।                                                                                   सूत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण भी कुछ इसी तरह छोटे टेंडर्स को एकीकृत करके बड़ा टेंडर करने की राह पर चल पड़ा है। जिसकी पहली स्वरूप वर्तमान में चल रहे सफाई के 7-8 छोटे टेंडर्स को क्लब करके बडा टेंडर करने का खेल प्रारंभ हो गया है। इस खेल के पीछे ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण की असल मंशा का तो पता नहीं लेकिन यह जरूर नजर आ रहा है कि अभी तक जो सफाई हो भी रही थी शायद वह  इस बड़े टेंडर की भेंट चढ़ सकती है। कारण स्पष्ट है कि अगर सफाई का टेंडर किसी बड़ी कंपनी को दिया गया तो बड़ी कंपनी छोटे ठेकेदारों को सबलेट करके केवल मुनाफा लेने का काम करेगी और इस बंदर बांट में ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण क्षेत्र की सफाई व्यवस्था चौपट होना स्वाभाविक माना जा रहा है।         ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण द्वारा सफाई हेतु किए जा रहे इस महा टेंडर के विषय में पता चला है कि ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण द्वारा 13 जनवरी 2025 को टेंडर आईडी- 225 GNIDA 992911-1से  इंटीग्रेटेड मैकेनिक स्वीपिंग, मैन्युअल स्वीपिंग, डोर टू डोर कूड़ा कलेक्शन और कचरा उठाने हेतु 241 करोड रुपए मूल्य का टेंडर फ्लोट किया गया है। जिसकी अंतिम तिथि 27 जनवरी 2025 थी। जानकारी में यह भी आया है कि ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण क्षेत्र में सफाई के इसी काम को अब तक लगभग 7 फर्म मात्र 100 करोड़ से भी कम धनराशि में कर रही हैं। जिनके टेंडर की कार्य अवधि भी अभी समाप्त नहीं हुई है। लेकिन महाकुंभ बनाने की तर्ज पर ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण द्वारा फ्लोट किए गए सफाई के इस टेंडर को भी महाटेंडर का रूप दे दिया गया है। ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण द्वारा 7-8 जोन में बंटे सफाई टेंडर्स को क्लब करके 241करोड रुपए मूल्य का महा टेंडर बनाने के पीछे यहां के निवासियों को किसी न किसी बड़े खेल की आशंका नजर आ रही है। इस महा टेंडर के लिए महाराष्ट्र मूल की एक बड़ी फर्म ने दस्तक दे दी है हालांकि ऑनलाइन टेंडर में कोई भी फर्म पार्टिसिपेट कर सकती है लेकिन महाराष्ट्र मूल की इस फर्म को ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण में पार्टिसिपेट कराने के पीछे किसी प्रभावशाली  का हाथ होने से इनकार नहीं किया जा सकता। इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता की किसी खास मकसद  से ही सात जोनों में बंटे हुए इस सफाई टेंडर को क्लब करके महाटेंडर का रूप दिया गया हो। इसका कयास इस बात से भी लगाया जा सकता है कि 241 करोड़ वैल्यू के इस महाटेंडर में उल्हासनगर महाराष्ट्र के पते की कोणार्क इंफ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड के अलावा दूसरी ऐसी फर्म ने निविदा प्रक्रिया में प्रतिभाग किया है जो निविदा शर्तों को ही पूरा नहीं करती है। जिससे साफ प्रतीत होता है कि टेंडर को लेने के लिए पीछे से यह कोई बड़ा खेल चल रहा है। ऐसा प्रतीत होता है कि टेंडर  शर्तों को पूरा न करने वाली इस फर्म को किसी मैनेजमेंट के तहत इस टेंडर प्रक्रिया में प्रतिभाग कराया गया ताकि इस टेंडर में दो फर्मों के प्रति भाग करने की शर्त पूरा हो सके। हालांकि सूत्रों से पता चला है कि इस महाटेंडर में खानापूर्ति के लिए भाग लेने वाली  वह फर्म जिसने टेंडर डॉक्यूमेंटस शर्तों को भी पूरा नहीं किया था 29 जनवरी 2025 को टेक्निकल बिड ओपन होने पर ही निविदा प्रक्रिया से बाहर कर दी गई है। लेकिन सफाई के इस महा टेंडर के पीछे कोई बड़ा खेल होने की इसलिए बू आ रही है कि ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण के सीईओ द्वारा टेंडर प्रक्रिया हेतु दिनांक 13 दिसंबर 2023 को जारी दिशा निर्देशों में स्पष्ट उल्लेख है कि द्वितीय बार में दो या उससे अधिक निविदाएं प्राप्त होने पर ही प्री क्वालिफिकेशन बिड खोली जाएगी। यदि दो से कम निविदाएं मूल्यांकन में क्वालिफाइड पाई जाती है तो पुनः निविदा आमंत्रित की जाएगी। तब ऐसे में सवाल उठता है कि जब इस निविदा की दूसरी बार की प्रक्रिया में दो से कम निविदाएं क्वालिफाइड पाई गई और वर्तमान में सफाई ठेका फर्मों की कार्य अवधि अभी शेष है तो ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण को  उच्च न्यायालय में केविएट फाइल करने की जल्दबाजी क्या रही ? हालांकि सीईओ ग्रेटर नोएडा द्वारा जारी गाइडलाइन्स में यह भी प्रावधान किया गया है कि तृतीय बार में निविदा आमंत्रण के पश्चात दो या दो से अधिक निविदाएं प्राप्त होती हैं तथा उनमें से यदि एक ही निविदा प्री- क्वालिफिकेशन बिड में अर्ह (क्वालीफाईड) होती है तो संबंधित वर्क सर्किल द्वारा कार्य की महत्ता,आवश्यकता के पूर्ण औचित्य की संस्तुति करते हुए निविदा समिति की सहमति उपरांत सक्षम स्तर से एक स्तर उच्च से एकल निविदा वित्तीय बिड़ खोले जाने के संबंध में निर्णय लिया जाएगा। यानि कि गाइडलाइंस से स्पष्ट है कि तीसरी बार सब कुछ संभव है। पुख्ता जानकारी तो नहीं है लेकिन सूत्रों ने तो यह तक भी बताया है किकोणार्क नामक फर्म को निविदा प्रक्रिया में उसे स्थिति में भी कंसीडर किया जा रहा है जब इस फर्म के डायरेक्टर द्वारा टेंडर डॉक्युमेंट्स के साथ आधार कार्ड तक नहीं लगाया गया है। और यह भी जानकारी प्राप्त हुई है कि टेंडर डॉक्युमेंट्स पर फर्म के प्रोपराइटर के हस्ताक्षर तक नहीं है।                                                                                       ऐसे में इस महा टेंडर के विषय में कई सवाल खड़े होना स्वाभाविक है। प्रथम तो यह कि अगर छोटे-छोटे टेंडर्स के जरिए सफाई का वही कार्य लगभग 100 करोड़ से भी कम धनराशि में कराया जा रहा है तो उसके लिए 241 करोड रुपए खर्च करने की वजह क्या है ?द्वितीय क्या इस टेंडर में सफाई की कोई नई तकनीक लाई जा रही है ?तृतीय क्या इस महा टेंडर को लेने वाली फर्म टेंडर कार्य सबलेट नहीं करेगी और अगर छोटे ठेकेदारों को सबलेट करेगी तो एक और फर्म के शामिल होने से मुनाफाखोरी में वृद्धि से गुणवत्ता बरकरार रख पाना मुमकिन हो पाएगा ?चतुर्थ अगर बडा टेंडर करने पर सफाई बेहतर हो सकती है तो मॉड्यूल के तौर पर लोगों के सामने क्षेत्र विशेष का उदाहरण पेश करें। अन्यथा किसी के दबाव और प्रभाव में किसी को अनुचित लाभ देने के लिए एक मैनेजमेंट के तहत प्लान करके फ्लोट किये गये इस टेंडर को निरस्त करने पर विचार किया जाए।

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