प्रेम ही आत्मा का भोजन है

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रविंद्र बसल वरिष्ठ संवाददाता/ जनवाणी न्यूज़ 

प्रेम आत्मा का भोजन

एक दीया जलता है, कोई भी उसके पास से निकले दीये का प्रकाश उस पर पड़ता ही है। यह निकलने वाले पर निर्भर नहीं करता। प्रकाश फैलाना दीये का स्वभाव है। यदि कोई दीया बुझाने के लिये पास आये, तो भी प्रकाश उस पर पड़ता है। परमात्मा हम से बहुत प्रेम करता है, प्रेम परमात्मा का ही दूसरा नाम है। हम उससे घृणा करते हैं अथवा पैर छूते हैं, यह बात बिल्कुल अर्थहीन है, आप जो करना चाहते है आप कीजिए। अब देखना यह है कि आप कब तक उसे स्वीकार नहीं करते।कब तक प्रार्थनापूर्ण नहीं होते।

प्रेम आत्मा का भोजन है । आत्मा में छिपी परमात्मा की ऊर्जा है। प्रेम आत्मा में निहित परमात्मा तक पहुँचने का मार्ग है । भीतर जाने का एक ही द्वार है वह है प्रेम । जैसे शरीर और अस्तित्व के बीच श्वास ने हमको जोड़ा है, वैसे ही प्रेम की तरंगें जब एक मस्ती में होती है तब हम परमात्मा से जुड़ते हैं। प्रेम होता है तो पूरी प्रकृति में आनंद , उत्सव और नृत्य दिखाई देता है। पूरे अस्तित्व में एक महारास होता है। प्रेम की दृष्टि हमको दिव्य बना देती है ।प्रेम में उतरना स्वर्ग में उतरने जैसा है

जब हमारा जीवन प्रेम और करुणा से भर जाता है तब हम प्रेममय हो जाते हैं। प्रेम.. प्रेम को आकर्षित करता है। जिन्दगी छोटी है। हम जीवन में प्रसन्न रहें, अहोभाव में रहें और प्रेम पूर्ण रहें। कुछ भी बोलने से पहले.. ध्यान से सुनें, घृणा करने से पहले.. प्रेम करें, किसी को दोष देने से पहले.. क्षमा करें, किसी का दिल दुखाने से पहले, महसूस करें, हार मानने से पहले, दिल से कोशिश करें., धन्यता से भरी जिन्दगी जिएँ। अपने ह्रदय को प्रेम से भरा रखें, जीवन बहुत सुन्दर है।

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