संपादकीय विशेष: नेपाल के लोकतंत्र की नई सुबह सुशीला कार्की का नेतृत्व, मार्च 2026 के चुनाव और अंतरराष्ट्रीय नजरिया

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रविन्द्र बंसल प्रधान संपादक / जन वाणी न्यूज़

संपादकीय विशेष: नेपाल के लोकतंत्र की नई सुबह

सुशीला कार्की का नेतृत्व, मार्च 2026 के चुनाव और अंतरराष्ट्रीय नजरिया

नेपाल की राजनीति एक ऐतिहासिक मोड़ पर खड़ी है। संसद भंग, हिंसक प्रदर्शनों के बाद उत्पन्न अस्थिरता और जनता के भारी दबाव के बीच पूर्व मुख्य न्यायाधीश सुशीला कार्की ने अंतरिम प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ली है। यह केवल नेतृत्व परिवर्तन नहीं, बल्कि लोकतंत्र को बचाने और जनता के विश्वास को बहाल करने का प्रयास है।

जनता का आंदोलन – सियासत के लिए आईना

युवाओं के नेतृत्व में शुरू हुए विरोध प्रदर्शनों ने पूरे देश को हिला दिया। 51 लोगों की मौत और 1,300 से अधिक घायल होने के बाद भी आंदोलन जारी रहा। राजनीतिक विश्लेषक डॉ. प्रदीप पोखरेल का कहना है –

> “यह विद्रोह सिर्फ सरकार के खिलाफ नहीं था, यह पूरे राजनीतिक तंत्र के खिलाफ जनता का असंतोष था। यह संकेत है कि पुरानी राजनीति अब जनता को स्वीकार्य नहीं है।”

 

दलों की सहमति और राजनीतिक परिपक्वता

नेपाली कांग्रेस, सीपीएन-यूएमएल और माओवादी केंद्र ने जिस तरह से मिलकर सुशीला कार्की के नाम पर सहमति बनाई, वह यह दर्शाता है कि लोकतांत्रिक संस्थाओं को बचाने की इच्छा अब भी जिंदा है। पूर्व राजनयिक माधव श्रेष्ठ कहते हैं –

> “अगर यह सहमति समय पर न बनती तो नेपाल गहरे संवैधानिक संकट में फंस सकता था। कार्की का नेतृत्व देश को स्थिरता की ओर ले जा सकता है।”

 

युवाओं की नई राजनीति

आंदोलन के दौरान सोशल मीडिया सबसे बड़ा हथियार बना। प्रदर्शन में शामिल एक छात्र नेता का बयान था –

> “हमें सिर्फ चुनाव नहीं, बदलाव चाहिए। हम चाहते हैं कि भ्रष्टाचार खत्म हो और युवाओं को सम्मानजनक रोजगार मिले।”

 

यह स्पष्ट है कि आगामी मार्च 2026 के चुनाव में युवा मतदाता और स्वतंत्र उम्मीदवार सत्ता समीकरण बदलने में अहम भूमिका निभाएंगे।

आर्थिक और कूटनीतिक चुनौतियाँ

अंतरिम सरकार के सामने सबसे बड़ी चुनौती है – अर्थव्यवस्था को संभालना। पर्यटन, हाइड्रोपावर और विदेशी निवेश पर बड़ा असर पड़ा है। आर्थिक विशेषज्ञ प्रो. सुषील कंडेल का कहना है –

> “अगर चुनाव पारदर्शी तरीके से होते हैं और स्थिर सरकार बनती है तो नेपाल अगले दो वर्षों में निवेश के लिए आकर्षक गंतव्य बन सकता है। अन्यथा आर्थिक संकट गहरा सकता है।”

 

भारत और चीन की नजर भी इस पर टिकी हुई है। द हिंदू ने अपनी रिपोर्ट में लिखा –

> “नेपाल की अंतरिम सरकार को संतुलित कूटनीति अपनानी होगी। भारत के साथ खुला व्यापार और चीन के साथ बुनियादी ढांचा सहयोग – यही नेपाल की अर्थव्यवस्था को गति दे सकते हैं।”

 

मार्च 2026 – लोकतंत्र की असली परीक्षा

राजनीतिक समीकरण तेजी से बदल रहे हैं। विशेषज्ञ मानते हैं कि इस बार स्वतंत्र उम्मीदवारों और नए राजनीतिक दलों का उभार देखने को मिल सकता है।
बीबीसी नेपाली सेवा ने अपनी टिप्पणी में कहा –

> “कार्की सरकार के लिए सबसे बड़ी कसौटी जनता का भरोसा कायम रखना और चुनाव समय पर कराना है। अगर इसमें देरी होती है तो असंतोष और बढ़ेगा।”

 

निष्कर्ष – उम्मीदों की सरकार

नेपाल ने एक बड़ा कदम उठाया है। यह बदलाव तभी सार्थक होगा जब अंतरिम सरकार पारदर्शी चुनाव कराए, भ्रष्टाचार पर सख्ती से कार्रवाई करे और युवाओं को भविष्य के लिए नई राह दिखाए। अन्यथा, लोकतंत्र पर जनता का भरोसा डगमगा सकता है।

नेपाल आज एक चौराहे पर खड़ा है – एक रास्ता उसे स्थिरता और विकास की ओर ले जा सकता है, दूसरा रास्ता फिर से अराजकता की ओर। सुशीला कार्की और राजनीतिक दलों पर अब यह जिम्मेदारी है कि वे सही दिशा चुनें।

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