दिनेश शर्मा वरिष्ठ संवाददाता /जन वाणी न्यूज़
कारगिल विजय दिवस
कारगिल विजय दिवस मनाया जाता है, भारतीय सेना के साहस , संघर्ष और बलिदान को याद करने के लिए । इसी दिन यानी 26 जुलाई को, भारतीय सेना ने अभूतपूर्व साहस का परिचय देते हुए पाकिस्तान को अपमानजनक हार का स्वाद चखाया था । वर्ष था 1999, जब भारतीय रणबांकुरो ने अदम्य में साहस का परिचय देते हुए पाकिस्तान सेना को परास्त किया था।
भारत और पाकिस्तान की सेना के बीच एक अलिखित समझौता था कि सर्दियों में ऊंची पहाड़ियों को खाली करके नीचे मैदान में दोनों सेनाएं लौट जाती थी, लेकिन पाकिस्तान ने पीठ पर वार करते हुए ,सर्दियों में ही आतंकवादियों और सेना की मदद से, उन चोटियों पर कब्जा कर लिया । इन चोटियों पर कब्जा करने से लद्दाख की तरफ जाने वाला हाईवे भी इनकी गोलाबारी के जद में आ गया और लद्दाख तक रसद पहुंचाना बहुत मुश्किल हो गया ।
सूचना मिलने पर भारतीय सेना ने इन चोटियों को दुश्मन के कब्जे से छुड़ाने के लिए ऑपरेशन विजय शुरू किया। इस ऑपरेशन के तहत भारतीय सेना ने अत्यंत कठिन परिस्थितियों में,दुर्गाम मार्गो मैं और विपरीत मौसम में अद्वितीय साहस और धैर्य का परिचय दिया। भारतीय सेवा के कमांडरों ने अचूक सैनिक रणनीति का प्रयोग किया। भारतीय सेना के बेजोड़ पराक्रम ,त्याग और बलिदान के कारण ही 26 जुलाई 1999 को भारतीय सेना ने कारगिल युद्ध में विजय प्राप्त की ।
भारतीय सेवा की गौरवान्वित कर देने वाली यह विजय गाथा उन अमर शहीदों और रणबांकुरो की चर्चा के बिना अधूरी है। जिनके बलिदान से यह विजय प्राप्त हुई।
5140 चोटी की लडाई -इस चोटी को मुक्त करने की कमान लेफ्टिनेंट कर्नल वाई के जोशी के हाथ में दी गई। उनकी रणनीति के तहत कैप्टन विक्रम बत्रा और कैप्टन जामवाल ने दो तरफ से पाकिस्तानी फौजियों पर हमला किया। इस लड़ाई में कैप्टन विक्रम बत्रा ने आमने-सामने के हाथ कॉम्बैट में चार पाकिस्तानी फौजियों को मार गिराया, और चोटी को पाकिस्तानी घुसपैठियों से मुक्त कराया। इसी चोटी को मुक्त करने के बाद ही, कैप्टन विक्रम बत्रा ने नारा लगाया था ‘यह दिल मांगे मोर’।
टाइगर हिल की लड़ाई- टाइगर हिल को मुक्त करने का काम 18 ग्रेनेडियर को सोपा गया। यह एक बहुत मुश्किल और जोखिम भरी लड़ाई थी , इसकी कमान कप्तान सचिन निंबालकर और लेफ्टिनेंट बलवान सिंह को सौंप गई, उन्होंने रणनीति के तहत पहाड़ की 1000 फुट की सपाट , ऊंची दीवार पर चढ़ाई की, । इसी लड़ाई को फिल्म लक्ष्य में रितिक रोशन को लड़ते दिखाया गया है। पहले पहुंचने वाली सात सैनिकों की टुकड़ी पर पाकिस्तानी फौजियों ने हैवी फायरिंग की, इस फायरिंग में ग्रेनेडियर योगेंद्र सिंह बुरी तरह घायल हुए और उनके बाकी 6 साथी बलिदान हो गए । ग्रेनेडीयर योगेंद्र सिंह ने घायल होने के बाद पाकिस्तान के सात फौजियों को मौत के घाट उतार दिया। और टाइगर हिल पर विजय प्राप्त की। इस अदम्य साहस के लिए ग्रेनेडियर योगेंद्र सिंह को सर्वोच्च सैनिक सम्मान परमवीर चक्र से नवाजा गया।
4875 चोटी की लड़ाई- इस चोटी को मुक्त करने का जिम्मा लेफ्टिनेंट कर्नल वाई के जोशी को सोपा गया, इन्होंने ही 5140 को मुक्त कराया था, उनकी रणनीति के तहत मेजर विजय भास्कर और मेजर गुरप्रीत सिंह ने दो तरफ से हमला किया, इस लड़ाई में राइफलमैन संजय कुमार ने तीन पाकिस्तानी सैनिकों को हाथ की लड़ाई में अकेले ही मार गिराया, यह लड़ाई बहुत भीषण थी और लंबी चली, फिर मेजर विकास वोहरा और कैप्टन विक्रम बत्रा को इसकी कमान सौंपी गई। कैप्टन विक्रम बत्रा ने अदम्य साहस का परिचय देते हुए , बुरी तरह घायल होने के बावजूद ,पांच पाकिस्तानी सैनिकों को मार गिराया, और चोटी को मुक्त कराया, लेकिन इस लड़ाई में कैप्टन विक्रम बत्रा शहीद हुए, उन्हें मरणोपरांत परमवीर चक्र से नवाजा गया।
खालूबार की लड़ाई – खालूबार में गोरखा राइफल्स और ग्रेनेडियर्स को कमान सौंप गई, यह लड़ाई भी बहुत भीषण थी और इसमें लेफ्टिनेंट मनोज कुमार पांडे ने घायल होने के बावजूद चार पाकिस्तानी सैनिकों को मार गिराया, और फिर दुश्मन का एक शॉट उनके सिर में लगा और इन्होंने वीरगति प्राप्त की। उनकी वीरता की बदौलत ही खालू बार को पाकिस्तानियों के कब्जे से मुक्त कराया गया, इन्हें भी मरणोपरांत परमवीर चक्र से नवाजा गया और लखनऊ सैनिक स्कूल का नाम उनके नाम पर रखा गया क्योंकि इन्होंने लखनऊ सैनिक स्कूल से ही पढ़ाई की थी।
कारगिल विजय दिवस उन वीर शहीदों की शहादत और उनकी याद का दिवस है जिन्होंने अपने प्राण न्योछावर करके देश की रक्षा की। इस दिन स्कूल ,कॉलेज और सरकारी संस्थानों में विभिन्न कार्यक्रम प्रस्तुत किए जाते हैं और वीर शहीदों को श्रद्धांजलि दी जाती है। मुख्य कार्यक्रम द्रास के कारगिल वॉर मेमोरियल में किया जाता है, और प्रधानमंत्री हर साल इसमें शामिल होते हैं।